अभयारिष्ट (Abhayarishta)
अभयारिष्ट (Abhayarishta) आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण दवा है जो ज्यादातर कब्ज और बवासीर के इलाज के लिए प्रयोग की जाती है। यह जठराग्नि को प्रदीप्ति करता है और साथ ही भूख भी बढ़ाता है। इसका प्रयोग उदर रोग में भी किया जाता है।
यह कब्ज और सख्त मल के कारण होने वाली परिकर्तिका रोग (anorectal fissure) में भी लाभकर है। बवासीर और परिकर्तिका का मुख्य कारण कब्ज का होना है जिसको अभयारिष्ट दूर करता है और इन रोगों में लाभदायक सिद्ध होता है। इसमें कुछ मूत्रल गुण भी है जिस के कर्ण यह मूत्र रोग में भी प्रयोग किया जाता है।
Contents
घटक द्रव्य एवं निर्माण विधि
अभयारिष्ट में निम्नलिखित घटक द्रव्यों है:
घटक द्रव्यों के नाम | मात्रा |
हरड़ – हरीतकी | 4800 ग्राम |
मुनक्का | 1920 ग्राम |
बायबिडंग | 480 ग्राम |
महुए के फूल | 480 ग्राम |
गुड़ | 4800 ग्राम |
गोखरू | 96 ग्राम |
निसोत | 96 ग्राम |
धनिया | 96 ग्राम |
धाय के फूल | 96 ग्राम |
इन्द्रायण की जड़ | 96 ग्राम |
चव्य | 96 ग्राम |
सौंफ | 96 ग्राम |
सौंठ | 96 ग्राम |
दस्तीमूल | 96 ग्राम |
मोचरस | 96 ग्राम |
अभयारिष्ट निर्माण विधि
सर्वप्रथम 4800 ग्राम हरड़, लगभग 1920 ग्राम मुनक्का, बायबिडंग और महुए के फूल प्रत्येक 480 ग्राम लें। इनको मोटा मोटा कूट लें और 49.152 लीटर जल में उबालें। जब लगभग एक चौथाई जल शेष रह जाए तो इसे उतार कर छान लें। इसके ठंडा हो जाने के बाद इसमें अन्य घटक मिलाएं जैसे गुड़ लगभग 4800 ग्राम और गोखरू, निसोत, धनिया, धाय के फूल, इन्द्रायण की जड़, चव्य, सौंफ, सौंठ, दस्तीमूल, मोचरस प्रत्येक लगभग 96 ग्राम। इनको मिलाने से पहले इनको कूट लें। इसके पश्चात इस सामग्री को मर्तबान में भर कर, ठीक से बंद कर दें और एक महीने के लिए रख दें। एक माह के पश्चात इसे छान लें। अब अभयारिष्ट उपयोग करने के लिए तैयार है।
औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
दोष कर्म (Dosha Action) | वात (Vata) शामक, कफ (Kapha) शामक, आम दोष नाशक |
अभयारिष्ट (Abhayarishtam) में निम्नलिखित औषधीय गुण है:
- आमदोष नाशक और आमपाचक
- सारक – मल को बाहर निकालने वाला अर्थात मलावरोध दूर करने वाला
- पाचक – पाचन शक्ति बढ़ाने वाला
- मूत्रल – खुलकर मूत्र लाने वाला
- अर्शोघ्न – बवासीर में हितकर
- क्षुधावर्धक – भूख बढ़ाने वाला
- अनुलोमन
- कृमिघ्न – बायबिडंग के कारण
- शुक्रशोधन
चिकित्सकीय संकेत (Indications)
अभयारिष्ट निम्नलिखित व्याधियों में लाभकारी है:
- कब्ज
- बवासीर
- उदर रोग
- परिकर्तिका रोग (anorectal fissure)
- मूत्र रोग – मूत्र कष्ट (पेसाब में रुकावट)
- अग्निमांद्य या मंदाग्नि
औषधीय लाभ एवं प्रयोग (Benefits & Uses)
अभयारिष्ट का प्रभाव आमाशय, ग्रहणी, आंत और बृहदान्त्र पर होता है। आमाशय में यह पाचक रस का स्राव करता है और भूख बढ़ाता है।
कब्ज – Constipation
आंतो में यह क्रमाकुंचन (peristalsis) अर्थात पुरःसरण क्रिया (peristaltic movement) विनियमित करने का काम करता है और आम का नाश करता है। यह गुण कब्ज को दूर करने में भी सहायक बनता है। अभयारिष्ट का उपयोग करने से मल और मूत्र की शुद्धि ठीक तरह से होती है।
बहुत सारी विरेचक (laxative) औषधियां लाभ के बजाय आंतों को हानि पहुँचती और आंतों को कमजोर करने और शिथिल बनाने के लिए जिम्मेदार होती है। ऐसी औषधियां का प्रयोग कभी कभी ही करना ठीक रहता है नहीं तो यह आंतों की पुरःसरण क्रिया को मंद कर देती है और ओर भी कठिन मलावरोद कर कारण बनती है। ऐसे में रोगी इनकी मात्रा बढ़ाते रहते है क्योंकि यह कम मात्रा में यह असर करना बंद कर देती है।
कब्ज के लिए अभयारिष्ट जैसी औषधियां का प्रयोग हितकर माना जाता है क्योंकि यह सारक गुण वाली तो है पर यह पुरःसरण क्रिया (peristaltic movement) को मंद नहीं करती बल्कि इसको ठीक करती है।
- यदि मल सख्त वा रुखा हो तो शुद्ध घी के साथ अभयारिष्ट का सेवन करना चाहिए। ऐसी स्थिति में सुबह और रात्रि के भोजन में 1-2 चम्मच शुद्ध देसी घी का सेवन अवश्य करना चाहिए या 1-2 चम्मच बादाम रोगन दूध में डालकर लें और भोजन ग्रहण करने के पश्चात अभयारिष्ट मात्रा अनुसार सेवन करना चाहिए।
- यदि मल सख्त वा रुखा नहीं है पर रोगी को मलावरोध है तो इसका प्रयोग एकेले भी किया जा सकता है।
- यदि मल में रेशा, आंव (mucus) और दुर्गंध हो तो इसका प्रयोग आरोग्यवर्धिनी वटी और चित्रकादि वटी के साथ करता चाहिए।
कब्ज में आंतों की पुरःसरण क्रिया मंद होने के कारण मल आंत में जमा होकर सड़ने लगता है। इस प्रक्रिया से विष उत्पन्न होता है जो रक्त में मिलकर विभिन्न रोगों का कारण बनता है। इसीलिए कब्ज को आयुर्वेद में बहुत से रोगों का कारण माना जाता है। यदि रोगी को कब्ज नहीं है तो वह कम बीमार पड़ता है। अभयारिष्ट का सेवन करने से आंतो की पुरःसरण क्रिया ठीक से कार्य करने लगती है और आँतों में विष की उत्पत्ति नहीं होती। अतः अभयारिष्ट कब्ज के कारण होने वाले रोगों से रक्षा करता है।
बवासीर – Piles
कज्ब का लगातार रहना बवासीर का एक मुख्य कारण होता है। कब्ज रोगी को मल त्याग करने के लिए अधिक दबाव डालना पड़ता जिससे बवासीर के मस्से बनने के संभावना बढ़ जाती है। ज्यादातर जो रोगी बवासीर से पीड़ित है उन सब में यही कारण देखा जाता है। दबाव के कारण मस्सा बनाने लगता है और कभी कभी मस्सा गुदा से बाहर आने लगता है। अभयारिष्ट बवासीर के मूल कारण अर्थात कब्ज को दूर कर बवासीर से रोगी को राहत देता है।
परिकर्तिका रोग – Anorectal Fissure
मल का सख्त होना और कज्ब का लगातार रहना परिकर्तिका रोग (fissure) का एक मुख्य कारण होता है। सख्त मल का त्याग करते समह यह कई बार गुदा के पास दरारे (cuts) डाल देता है। इसमें अभयारिष्ट का प्रयोग लाभदायक है। हालांकि अभयारिष्ट केवल मलावरोद दूर करता है, पर सख्त मल पर यह काम नहीं करता। इसलिए सुबह और रात्रि के खाने में 1-1 चमच शुद्ध घी का सेवन अवश्य करना चाहिए और भोजन ग्रहण करने के पश्चात अभयारिष्ट मात्रा अनुसार सेवन करना चाहिए।
यदि परिकर्तिका रोग गंभीर हो तो अभयारिष्ट और शुद्ध घी साथ गंधक रसायन और रौप्य भस्म (चांदी भस्म) का प्रयोग तुरंत लाभ देता है।
मूत्र कष्ट (पेसाब में रुकावट) – Dysuria
इसमें मूत्रल गुण है। इसके उपयोग से बार बार अधिक मात्रा में मूत्र आता है और पेसाब में रुकावट दूर होती है।
अग्निमांद्य या मंदाग्नि – Loss of Appetite
अभयारिष्ट के घटक द्रव्य आमाशय से पाचक रसों का स्राव करते है जिससे जठराग्नि प्रदीप्ति होती है और भूख लगती है। यदि अग्निमांद्य कब्ज के साथ संबंधित हो या मंदाग्नि के साथ में मलावरोद भी हो, तो यह ज्यादा लाभकर सिद्ध होता है।
मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
अभयारिष्ट की सामान्य औषधीय मात्रा व खुराक इस प्रकार है:
औषधीय मात्रा (Dosage)
बच्चे | 2.5 से 10 मिलीलीटर |
वयस्क | 10 से 30 मिलीलीटर |
आप के स्वास्थ्य अनुकूल अभयारिष्ट की उचित मात्रा के लिए आप अपने चिकित्सक की सलाह लें।
सेवन विधि
अभयारिष्ट को भोजन ग्रहण करने के पश्चात जल की सामान मात्रा के साथ लें।
अभयारिष्ट लेने का उचित समय (कब लें?) | भोजन ग्रहण करने के पश्चात |
दिन में कितनी बार लें? | 2 बार – सुबह और शाम |
अनुपान (किस के साथ लें?) | सामान मात्रा में गुनगुना पानी मिलकर लें |
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) | कब्ज में 1 से 2 सप्ताह, अन्य रोगों में 12 सप्ताह तक प्रयोग करना चाहिए। |
रोगी के स्वास्थ्य के अनुसार अभयारिष्ट के साथ चिकित्सा की अवधि छे महीने तक भी हो सकती है।
दुष्प्रभाव (Side Effects)
यदि अभयारिष्ट का प्रयोग व सेवन निर्धारित मात्रा (खुराक) में चिकित्सा पर्यवेक्षक के अंतर्गत किया जाए तो अभयारिष्ट के कोई दुष्परिणाम नहीं मिलते।
अधिक मात्रा में अभयारिष्ट से कारण किसी किसी को दस्त लग जाते है। इसलिए इसका प्रयोग निर्धारित मात्रा में चिकित्सक सलाह से करें।
गर्भावस्था और स्तनपान (Pregnancy & Lactation)
अभयारिष्ट का प्रयोग गर्भावस्था में हितकारी नहीं माना जाता क्योंकि इसका मुख्य घटक हरीतकी है जिसका प्रयोग गर्भवती महिला के लिए आयुर्वेद में निषिद्ध है।