आसव अरिष्ट

अमृतारिष्ट के घटक द्रव्य, प्रयोग एवं लाभ, मात्रा और सेवन विधि

अमृतारिष्ट (Amritarishta or Amrutharishtam) जीर्ण ज्वर की एक महत्वपूर्ण औषधि है। यह टाइफाइड बुखार के जीर्ण होने पर इसका प्रयोग कारण उत्तम होता है और ज्वर को दूर करने में अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है। यह रोगी की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है और कई तरह के संक्रमण रोगों से बचाता है।

आम तौर पर, इसका प्रयोग बुखार के बाद होने वाली दुर्बलता में किया जाता है। यह बदन दर्द को दूर करता है और पाचक अग्नि को उतेजित करता है। अक्सर ज्वर  के बाद रोगी की भूख कम हो जाती है जिसे यह पुनः स्थापित करने में मदद करता है।

यह बुखार के निम्नलिखित लक्षणों से राहत प्रदान करता है:

  • ज्वर के कारण होने वाली जलन
  • अत्यधिक प्यास लगना
  • बेचैनी
  • बदन दर्द
  • थकान
  • दुर्बलता

अमृतारिष्ट में गिलोय एक प्रदान द्रव्य है जो यूरिक एसिड के स्तर को भी कम करने में सहायक है

अमृतारिष्ट में गिलोय एक प्रदान द्रव्य है जो यूरिक एसिड के स्तर को भी कम करने में सहायक है।  यह पीलिया से पीड़ित रोगियों के लिए भी फायदेमंद है।

Contents

घटक द्रव्य एवं निर्माण विधि

अमृतारिष्ट में निम्नलिखित घटक द्रव्य (ingredients) है:

गिलोय 4800 ग्राम
दशमूल 4800 ग्राम
जल 49 लीटर
गुड़ 14 किलो 400 ग्राम
जीरा 770 ग्राम
पित्तपापड़ा 100 ग्राम
सतोना 48 ग्राम
सोंठ 48 ग्राम
काली मिर्च 48 ग्राम
पीपल 48 ग्राम
मोथा 48 ग्राम
नागकेशर 48 ग्राम
कुटकी, 48 ग्राम
अतीस 48 ग्राम
इन्द्रजौ 48 ग्राम

निर्माण विधि

अमृतारिष्ट की निर्माण करने की विधि इस प्रकार है।

  1. सर्वप्रथम 4800 ग्राम गिलोय और 4800 ग्राम दशमूल को मोटा मोटा कूटकर लगभग 49 लीटर जल में काढ़ा बनायें।
  2. जब एक चौथाई जल शेष रह जाए तो इसे आंच से उतार लें और अच्छी तरह मसलकर छान लें।
  3. ठंडा हो जाने पर इसमें 14 किलो 400 ग्राम गुड़ मिलाएँ। इसके बाद इसमें 770 ग्राम जीरा, लगभग 100 ग्राम पित्तपापड़ा और सतोना, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, मोथा, नागकेशर, कुटकी, अतीस, इन्द्रजौ प्रत्येक को 48 -48 ग्राम मिलाएँ।
  4. किसी मिटटी के बर्तन में अच्छी तरह बंद करके एक महीने के लिए रख दें।
  5. एक माह के बाद जब यह औषधि अच्छी तरह से पक जाए तो इसको छान लें।

औषधीय कर्म

अमृतारिष्ट (Amritarishta) में निम्नलिखित औषधीय गुण (Medicinal Actions) है:

  1. ज्वरहर
  2. विषम ज्वर घ्न
  3. संतापहर
  4. आमपाचन – शरीर के टॉक्सिन को नष्ट करने वाली
  5. दाहप्रशमन – जलन कम करने वाला
  6. जीवाणु नाशक
  7. वेदनास्थापन – पीड़ाहर (दर्द निवारक)
  8. रोग प्रतिरोधक शक्ति वर्धक
  9. प्रतिउपचायक – एंटीऑक्सीडेंट
  10. बल्य – शारीर और मन को ताकत देने वाला
  11. शोथहर
  12. क्षुधावर्धक – भूख बढ़ाने वाला
  13. यकृत वृद्धिहर
  14. कामलाहर
  15. प्लीहवृद्धिहर

चिकित्सकीय संकेत

अमृतारिष्ट (Amritarishta) निम्नलिखित व्याधियों में लाभकारी है:

  1. ज्वर
  2. मलेरिया
  3. टाइफाइड बुखार – आंत्रिक ज्वर
  4. ज्वरोतर दुर्बलता और बल क्षय
  5. जीर्ण ज्वर
  6. शीत ज्वर
  7. प्लीहवृद्धि
  8. यकृत वृद्धि
  9. पीलिया
  10. काला आजार (Scarlet leishmaniasis)
  11. प्रमेह
  12. अग्निमाध्य और भूख में कमी
  13. जिगर के कारण त्वचा रोग
  14. जीर्ण कण्डु (खाज खुजली)
  15. सूतिका ज्वर

अमृतारिष्ट के लाभ एवं प्रयोग

अमृतारिष्ट के लाभ (benefits) एवं प्रयोग (uses) निम्नलिखित है:

जीर्ण ज्वर

अमृतारिष्ट (Amritarishta) विशेष रूप से पुराने बुखार (जीर्ण ज्वर) के इलाज के लिए उत्तम औषधि है। यह सभी प्रकार के पित्त प्रधान ज्वर, विषमज्वर, और शीतज्वर आदि के जीर्ण हों जाने पर प्रयोग किया जाता है। यदि रोगी को मंद मंद बुखार रहता हो तो इसका प्रयोग किया जा सकता है। इसके प्रयोग से कुछ ही दिनों में ज्वर ठीक हो जाता है और कमजोरी दूर होती है और भूख बढ़ती है।

तीव्र ज्वर में भी इसका प्रयोग अन्य औषधियों के साथ किया जाता है। इन में यह रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में मदद करता है और ज्वर की तीव्रता कम करता है। किसी भी विकट ज्वर में अमृतारिष्ट को सोमल कल्प के साथ देने से उत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं।

आंत्रिक ज्वर (टाइफाइड बुखार)

अमृतारिष्ट में गिलोय है जो टाइफाइड बुखार के जीवाणु का नाश करने के लिए प्रभावशाली है। आयुर्वेद में इसका प्रयोग टाइफाइड ज्वर की जीर्ण अवस्था में किया जाता है।  जब बुखार ९९ या १०० डिग्री से कम हो तो इसका प्रयोग अति लाभकारी सिद्ध होता है। यह टाइफाइड के बाद आने वाली दुर्बलता के इलाज के लिय भी उपयोगी है।

ज्वरोतर दुर्बलता और बल क्षय

लंबे समय तक संक्रामक ज्वर के कारण शरीर निर्बल हो जाता और बल की हानि होती है। इस विकार में अमृतारिष्ट का उपयोग करने से शरीर में बल और शक्ति आती है।

सूतिका ज्वर (प्रसूति ज्वर)

हालांकि दशमूलारिष्ट सूतिका ज्वर (puerperal fever) की एक महत्वपूर्ण औषधि है पर यदि रोगी को पित्त प्रधान लक्षण हो तो इसका प्रयोग कम करना ही हितकारी माना जाता है। पित्त प्रधान लक्षणों में रोगी को जलन और दस्त होते है जिसमे अमृतारिष्ट  का प्रयोग करना चाहिए।

अग्निमांद्य

ज्वरोतर होने वाले अग्निमांद्य या भूख की कमी में अमृतारिष्ट एक उत्तम औषधि का कार्य करती है। यह अमाशय से पाचक रस का स्त्राव कराती है और अग्नि की क्रिया को सुचारू बनाती है। इसके प्रयोग से अमाशय में रस का स्राव उचित प्रकार से होने लगता है जिससे पाचन ठीक हो जाता है और भूख लगने लगती है।

जीर्ण अतिसार और जीर्ण संग्रहणी

जीर्ण अतिसार और जीर्ण संग्रहणी के रोगियों में जिगर अपना कार्य ठीक से नहीं करता और जिगर का कार्य ठीक करने के लिए अमृतारिष्ट का सेवन करना उत्तम रहता है। इसके प्रयोग से अतिसार में अबधातु कम होती है और यकृतपित्त का स्राव उचित होने लगता है। यह जिगर के कार्य को सुचारु करता है और जीर्ण अतिसार और जीर्ण संग्रहणी से राहत पहुँचाता है।

प्लीहा वृद्धि

जीर्णज्वर के दुष्प्रभाव के कारण कई रोगी प्लीहा वृद्धि से पीड़ित हो जाते हैं। प्लीहा वृद्धि अन्य कारणों से भी हो सकती हैं। अमृतारिष्ट को रोहितकारिष्ट के साथ प्लीहा वृद्धि के उपचार के लिए दिया जाता है। इन दोनों औषधियो के प्रयोग से प्लीहा वृद्धि से राहत मिलती है।

यकृत विकार और पीलिया

अमृतारिष्ट के उपयोग से यकृत विकार दूर होते है और इसका पान करने से यकृत में पित्तस्राव उचित प्रकार से होनेलगता है और पित्तोत्पादक घटकों को बल मिलता है, जिससे यकृत ठीक से काम करने लगता है। अंतत यकृत विकार दूर होते है।  इसके प्रयोग से पीलिया में भी लाभ होता है।

जिगर के कारण होने वाले त्वचा रोग

जिगर विकारों में कई रोगियों को त्वचा  रोग हो जाते है। इनमे रोगी की त्वचा पर काले धब्बे या सूक्ष्म पिटिका और खुजली होती है। यदि इनका कारण लिवर हो तो अमृतारिष्ट बहुत राहत देता हैं।

हीमोग्लोबिन और रक्त कणों की कमी

अमृतारिष्ट के प्रयोग से रंजकपित्त का स्राव ठीक होने लगता है जिससे रक्तकणों में वृद्धि होने लगती है परिणामस्वरूप मुख की निस्तेजता दूर होकर लाली आ जाती है।

मूत्रदोष और प्रमेह

अमृतारिष्ट के उपयोग से मूत्रदोष नष्ट होते हैं, प्रमेह में लाभ मिलता है। जिन रोगियों को बार बार मूत्र त्याग पड़ता है यह उन के लिए भी यह अच्छी औषधि है।

सुजाक या उपदंश के कारण संधिवात

यदि सुजाक या उपदंश के कारण संधिवात उत्पन्न हो गया हो तो अमृतारिष्ट से लाभ मिलता है और साथ ही जीर्ण आमवात में उपयोग करने से आराम मिलता है।

मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)

अमृतारिष्ट की सामान्य औषधीय मात्रा  व खुराक इस प्रकार है:

औषधीय मात्रा (Dosage)

बच्चे लगभग 6 से 12 ग्राम
वयस्क लगभग 12 से 24 ग्राम

सेवन विधि

अमृतारिष्ट लेने का उचित समय (कब लें?) खाना खाने के तुरंत बाद लें
दिन में कितनी बार लें? 2 बार – सुबह और शाम
अनुपान (किस के साथ लें?) बराबर मात्रा में गुनगुने पानी मिलाकर लें।
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) कम से कम 2 हफ्ते; जीर्ण रोग में 3 महीने या चिकित्सक की सलाह लें।

रोगी के स्वास्थ्य के अनुसार अमृतारिष्ट के साथ चिकित्सा की अवधि छे महीने तक या इससे भी ज्यादा हो सकती है। आप के स्वास्थ्य अनुकूल अमृतारिष्ट की उचित मात्रा के लिए आप अपने चिकित्सक की सलाह लें।

संदर्भ

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