अरविन्दासव घटक द्रव्य, प्रयोग एवं लाभ, मात्रा, दुष्प्रभाव
अरविन्दासव (Arvindasava या Aravindasavam) आसव श्रेणी में वर्गीकृत एक आयुर्वेदिक औषधि हैं। शिशुओं और बच्चों में पाचन टॉनिक के रूप में प्रयोग किया जाता है। अरविन्दासव विशेष रूप से बच्चों के विभिन्न रोगों का नाश करता है, उन्हें पुष्ट और निरोगी बनाता है, उनकी भूख बढ़ाता है और उनके गृहदोष और मानसिक समस्याएं दूर करता है। यह बच्चों की शारीरिक और मानसिक शक्ति बढ़ाता है। इसका प्रयोग स्वस्थ बच्चें भी कर सकते है क्योंकि यह बच्चे के शारीरिक विकास को बढ़ावा देता है।
मुख्य रूप से, इकसा प्रयोग बच्चों में होने वाले रोगों में किया जाता है। यह बार-बार होने वाली खांसी, अपच, भूख न लगना, आंत्र गैस, अतिसार (दस्त), बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में रुकावट, सूखा रोग और रिकेट्स (हड्डियों की कमजोरी) के इलाज के लिए अतिउत्तम दवा है।
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घटक द्रव्य एवं निर्माण विधि
अरविन्दासव में निम्नलिखित घटक द्रव्यों है:
घटक द्रव्यों के नाम | मात्रा |
सफ़ेद कमल | 48 ग्राम |
खस | 48 ग्राम |
गंभारी की छाल | 48 ग्राम |
नील कमल | 48 ग्राम |
मजीठ | 48 ग्राम |
छोटी इलायची | 48 ग्राम |
खरेंटीमूल | 48 ग्राम |
जटामांसी | 48 ग्राम |
नागरमोथा | 48 ग्राम |
काली अनंतमूल | 48 ग्राम |
हरड़ | 48 ग्राम |
बहेड़ा | 48 ग्राम |
बच | 48 ग्राम |
आंवला | 48 ग्राम |
कचूर | 48 ग्राम |
काली निसोत | 48 ग्राम |
नील के बीज | 48 ग्राम |
पटोल पत्र | 48 ग्राम |
पित्तपापड़ा | 48 ग्राम |
अर्जुन की छाल | 48 ग्राम |
मुलेठी | 48 ग्राम |
महुआ के फूल | 48 ग्राम |
मुरा (ना मिले तो जटामांसी) | 48 ग्राम |
मुनक्का | 960 ग्राम |
धाय के फूल | 770 ग्राम |
शक्कर | 4800 ग्राम |
शहद | 2400 ग्राम |
जल | लगभग 25 लीटर |
अरविन्दासव निर्माण विधि
अरविन्दासव के घटक और निर्माण करने की विधि इस प्रकार है।
सबसे पहले सफ़ेद कमल, खस, गंभारी की छाल, नील कमल, मजीठ, छोटी इलायची, खरेंटीमूल, जटामांसी, नागरमोथा, काली अनंतमूल, हरड़, बहेड़ा, बच, आंवला, कचूर, काली निसोत, नील के बीज, पटोल पत्र, पित्तपापड़ा, अर्जुन की छाल, मुलेठी, महुआ के फूल, मुरा (ना मिले तो जटामांसी) प्रत्येक को 48 ग्राम लें और कूट कर चूर्ण बना लें।
इसके बाद चूर्ण में 960 ग्राम मुनक्का, धाय के फूल 770 ग्राम, शक्कर 4800 ग्राम, शहद 2400 ग्राम और जल लगभग २५ लीटर मिलाएँ। फिर इस मिश्रण को मर्तबान में भरकर एक महीने के लिए रख दें, और परिपक़्व होने पर छान लें।
आयुर्वेदिक गुण धर्म एवं दोष कर्म
अरविन्दासव एक संतुलित औषधि है जो बच्चों के सभी रोगों में हितकारी है। इसका प्रयोग बिना किसी दोष की प्रबलता विचार किए किया जा सकता है। फिरभी यह मुख्य रूप से वात दोष (Vata Dosha) का शमन करता है और पित्त (Pitta) और कफ (Kapha) को संतुलित करने का काम करता है।
औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
अरविन्दासव में निम्नलिखित औषधीय गुण है:
- रोग प्रतिरोधक शक्ति वर्धक
- पाचन टॉनिक
- वायु नाशक
- पौष्टिक – पोषण करने वाला
- मस्तिष्क बल्य – मस्तिष्क को ताकत देने वाला
- कासहर
- क्षुधावर्धक – भूख बढ़ाने वाला
- उदर शूलहर
- पाचन – पाचन शक्ति बढाने वाली
- गैस हर – उदर से गैस को बाहर निकालने वाला
- अस्थिबर्घन – हड्डियों की शक्ति में वृद्धि करता है
चिकित्सकीय संकेत (Indications)
- कुपोषण
- बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में रुकावट
- सूखा रोग
- अस्थिवक्रता – रिकेट्स (हड्डियों की कमजोरी)
- अस्थि घनत्व का कम होना
- बार-बार होने वाली खांसी
- अपच
- भूख न लगना
- आंत्र गैस
- बार-बार होने वाले अतिसार (दस्त) – अन्य दवाओं के साथ
- गृहदोष और मानसिक समस्याएं या मनोरोग
अरविन्दासव के औषधीय लाभ एवं प्रयोग
अपने गुणों के कारण यह औषधि बच्चों के लिए बहुत लाभदायक है।
अस्थि वक्रता, कुपोषण और सूखा रोग
बहुत से छोटे बालकों को अस्थि वक्रता या रिकेट्स (rickets) रोग हो जाता है। यह रोग विटामिन डी, कैल्शियम, या फॉस्फेट की कमी से उत्पन होता हैं। हड्डियां कमजोर पड़ने लगती है और नरम हो जाती हैं और हाथ पैर पतले होकर मुड़ने लगते हैं।
कुपोषण और सूखा रोग कुपोषण और सूखा रोग में बच्चा कमजोर हो जाता है और बालकों में जीवनीय द्रव्यों की कमी हो जाती है। शरीर का पोषण कम हो जाता है। उचित पोषण न मिलने से बच्चों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ते है:
- खांसी
- अपचन
- भूख की कमी
- अफरा
- उदर-स्फीति – पेट फूलना
- पतले दस्त
- हमेशा रोते रहना
इन सभी विकारों में अरविन्दासव बालकों के शरीर में जीवनीय द्रव्यों की पूर्ती करता है और बच्चों का पाचन तंत्र ठीक कर उनकी पाचन क्षमता बढ़ाता है।
अस्थि वक्रता या रिकेट्स (rickets) रोग में इसका प्रयोग प्रवाल पिष्टी (Praval Pishti), मुक्ताशुक्ति पिष्टी, अभ्रक भस्म, यशद भस्म, आमला चूर्ण, सितोपलादि चूर्ण आदि के साथ करना चाहिए। विटामिन डी का प्रयोग भी कर लेना चाहिए।
सुजाक रोग के पश्चात शरीर में विष
सुजाक रोग के पश्चात यदि किसी रोगी में निम्नलिखित लक्षण हो तो अरविन्दासव का प्रयोग करा हितकर रहता है:
- मूत्र में बार बार जलन
- मूत्र गाढ़ा हो जाना
- मूत्र में पस आना
ऐसे लक्षण हो तो रोगी में अभी सुजाक के जीवाणु के कारण उत्तपन विष शेष रहता है जिसका नाश करने के लिए अरविन्दासव को चन्दनासव के साथ प्रयोग करने से उत्तम लाभ मिलता है।
रक्त प्रदर
हालांकि अरविन्दासव का प्रयोग मुख्य रूप से बच्चों के रोगों में ही किया जाता है। पर यह स्त्रियों में होने वाली अत्याधिक रक्त स्त्राव में भी लाभदायक सिद्ध होता है। रक्त प्रदर होने पर इसका प्रयोग प्रवाल पिष्टी, मुक्ताशुक्ति पिष्टी, आमला चूर्ण, मोचरस, अशोक चूर्ण या अशोकारिष्ट आदि के साथ करना चाहिए। गर्भाशय को ताकत देने के लिए चन्द्रप्रभा वटी का भी प्रयोग करना चाहिए।
मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
अरविन्दासव की सामान्य औषधीय मात्रा व खुराक इस प्रकार है:
औषधीय मात्रा (Dosage)
बच्चे | 1 चमच (5 मिलीलीटर) |
वयस्क | 2 से 4 चमच (10 से 20 मिलीलीटर) |
सेवन विधि
अरविन्दासव लेने का उचित समय (कब लें?) | सुबह और रात्रि भोजन के बाद |
अरविन्दासव को दिन में कितनी बार लें? | 2 बार – सुबह और शाम |
अनुपान (किस के साथ लें?) | बराबर मात्रा गुनगुना पानी मिला कर |
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) | कम से कम 3 महीने या चिकित्सक की सलाह लें |
आप के स्वास्थ्य अनुकूल अरविन्दासव की उचित मात्रा के लिए आप अपने चिकित्सक की सलाह लें।
दुष्प्रभाव (Side Effects)
यदि अरविन्दासव का प्रयोग व सेवन निर्धारित मात्रा (खुराक) में चिकित्सा पर्यवेक्षक के अंतर्गत किया जाए तो अरविन्दासव के कोई दुष्परिणाम नहीं मिलते। अधिक मात्रा में अरविन्दासव के साइड इफेक्ट्स की जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है।
गर्भावस्था और स्तनपान (Pregnancy & Lactation)
गर्भावस्था और स्तनपान दौरान अरविन्दासव का प्रयोग करने से पहिले चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।