भस्म एवं पिष्टी

भस्म परीक्षा – उत्तम भस्म की गुणवत्ता नियंत्रण के मानक

भस्म की गुणवत्ता की परीक्षा (bhasma standardization and quality tests) के लिए आयुर्वेद में बहुत से उपायो का वर्णन किया गया है। इस पोस्ट में हम इस के बारे में जाने गे।

भस्म, धातु या खनिज और जड़ी-बूटियों के अर्क से तैयार एक अद्वितीय आयुर्वेदिक उत्पाद है जिसे भारतीय उपमहाद्वीप में 7 वीं शताब्दी ईस्वी के बाद से जाना जाता है। इसे व्यापक रूप से विकट रोगों (acute diseases) के उपचार प्रयोग किया जाता है। जानवरों से प्राप्त सींग, खोल, पंख और धातु, गैर धातु और जड़ी-बूटियों का इसमें प्रयोग किया जाता है। भस्म का अर्थ है निस्तापन से प्राप्त राख। किसी पदार्थ का शुद्धिकरण की प्रक्रिया से होकर, विभिन्न जड़ी-बूटियों के साथ निस्तापन के बाद प्राप्त उत्पाद को भस्म कहते हैं। भस्मीकरण की प्रक्रिया के कई चरण होते हैं जो बहुत समय लेने वाले और जटिल होते हैं।

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उत्तम भस्म की गुणवत्ता नियंत्रण के मानक

भस्म का मानक स्तर जांचने के लिए रस शास्त्र के अनुसार कुछ प्रयोग किये जाते हैं। आयुर्वेद में निम्नलिखित मानको का प्रयोग भस्म की गुणवत्ता की जाँच के लिए की जाती है।

रेखापुरन – Rekhapurnatvam

शुद्ध भस्म को आप अपनी उँगलियों पर मलेंगे तो वह इतनी महीन होगी कि वह आप की ऊँगली की रेखाओं में घुस जायेगी किसी टेलकॉम पाउडर की तरह।

अपुनर्भव

भस्म इस प्रकार बनानी चाहिए कि वो पुनः धातु के रूप में प्राप्त ना की जा सके।

वर्ण (रंग) – Color

प्रतेक भस्म का रंग वर्ण अलग अलग होता है। इनका रंग प्रयुक्त सामग्री पर निर्भर करता है। आयुर्वेदिक पाठ में लिखे अनुसार रंग और वर्ण की जाँच करनी चाहिए।

निश्चन्द्रत्वं (निसचन्द्रिकरण – बिना चमक के) – Nischandratva

चिकित्सीय प्रयोग से पहले भस्म बिना चमक की होनी चाहिए। इस परीक्षण के लिए, भस्म को उज्ज्वल सूरज की रोशनी में रखते हैं, यदि चमक नहीं है तो यह उत्तम है, यदि चमक है तो इस पर पुनः निस्तापन की क्रिया करते हैं।

शुद्ध भस्म अपनी धातु वाली चमक खो चुकी होगी, उसमें बिलकुल भी चमक नहीं होगी।

वारितर (हल्कापन और शुद्धता) – Varitaratavam

भस्म को स्थिर पानी पर तैरना चाहिए। शुद्ध भस्म को स्थिर पानी पर डालेंगे तो वह तैरती रहेगी, धातु की भांति डूबेगी नहीं। यही इसकी शुद्धता प्रमाणित करती है।

स्पर्शनीय उत्तेजना

इसके प्रयोग करने से किसी भी प्रकार की जलन या सनसनी नहीं होनी चाहिए।

कण आकार

भस्म सदैव महीन चूर्ण के रूप में होनी चाहिए।

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