काली जीरी के लाभ एवं उपयोग, गुण और काली जीरी के नुकसान
काली जीरी का प्रयोग अजवायन और मेथी के साथ वजन कम करने और पाचन क्रिया को ससूधारने के लिए लोकप्रिय है। इसका उपयोग त्वचा रोगों के उपचार के लिए किया जाता है। यह खुजली को कम करने में मदद करती है। इसे रक्त शोधक माना जाता है क्योंकि यह रक्त से विषाक्त पदार्थों को निकालता है। काली जीरी पेट की क्रिमियो के लिए एक उत्कृष्ट आयुर्वेदिक औषधि हैं। यह क्षुधा को बढ़ाता है। लेकिन संवेदनशील लोगों में इसके कड़वे स्वाद के कारण मतली आ सकती है।
काली जीरी बालों के लिए एक अच्छी दवा है। यह बालों को बढाती है और बालों की रूसी को दूर करती है। यह सुगर के रोगियो के लिए भी एक अच्छी दवा है। यह रक्त में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद करती है। यह भोजोनोपरांत उच्चशर्करा (भोजन के बाद रक्त ग्लूकोज स्तर में वृद्धि) को कम करने के लिए भी लाभप्रद है।
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काली जीरी क्या है?
काली जीरी भृङ्गराज कुल की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। आयुर्वेद में काली जीरी का दूसरा नाम अरण्यजीरक हैं।
अन्य भाषाओं में काली जीरी के नाम
संस्कृत (सु.) | अरण्यजीरक, वनजीरक, सोमराजी |
हिंदी (हि.) | काली जीरी, सोहराई |
बंगाली (बं.) | सोमराज |
मराठी (म.) | कडुजिरें |
गुजराती (गु.) | काली जीरी, कड़वी जीरी |
पंजाबी (पं.) | काली जीरी |
अरबी (अ.) | कमूनबर्री |
फारसी (फा.) | जिरए बर्री (सोहराई) |
तामिल (ता.) | आदाबी जिलाकारा |
तेगुलू (ते.) | कटटू शिरागाम |
अंग्रेज़ी (अं.) | पर्पल फ्लीबेन (Purple Flebane) |
उपयोगी अंग (Medicinal Parts)
काली जीरी के पौधे के बीज चिकित्सार्थ प्रयोग में लाये जाते हैं। काली जीरी के बीज का उपयोग आयुर्वेदिक और घरेलु औषधियों में किया जाता है। खाद्य विषाक्तता के कारण होने वाले दस्त के उपचार में कोमल पत्तियों का उपयोग किया जाता है।
आयुर्वेदिक गुण-धर्म एवं दोष कर्म
आयुर्वेद में काली जीरी (अरण्यजीरक) के निम्नलिखित गुण धर्म होते हैं: –
रस | कटु |
अनुरस | तिक्त |
गुण | लघु, तीक्ष्ण |
वीर्य (तासीर) | उष्ण |
विपाक | कटु |
दोष कर्म | वीर्य उष्ण होने के कारण कफ शामक और वात शामक |
काली जीरी मुख्य रूप से कफ दोष पर क्रिया करती है और वात वृद्धि को भी कम करती है। इसके आयुर्वेदिक गुणों के अनुसार, पित्त वृद्धि वाली स्थितियों में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। इसलिए, यह कफ प्रबलता के लक्षण वाले लोगों के लिए सबसे उपयुक्त है। यह मोटापा और मोटापे से जुड़ी बीमारियों में भी अच्छी तरह से काम करता है। इसकी रक्त में चर्बी को कम करने की क्षमता भी होती है, इसलिए यह रक्त में उच्च कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड के स्तर वाले लोगों के लिए भी लाभप्रद है।
औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
काली जीरी कृमिनाशक के रूप में कार्य करता है। यह मुख्यरूप से रॉउंडवॉर्म (Roundworm) और टैपवार्म (Tapeworm) के विरुद्ध अधिक प्रभावी है। त्वचा में, इसके सूजन नाशक गुण अधिक देखे गए हैं जिसके कारण व्रण, खुजली और सोरायसिस सहित विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों के लिए यह एक अच्छा उपचारात्मक उपाय है। यह मुख्य रूप से खुजली और त्वचा की चिड़चिड़ाहट को कम करता है। यह त्वचा के फोड़ों का उपचार में लाभदायक है और ल्यूकोडरर्मा (श्वित्र) के उपचार में सहायक है। यह बहुमूत्ररोग को भी नियंत्रित करने में मदद करता है।
काली जीरी (Kali Jeeri) में निम्नलिखित औषधीय गुण है:
- कृमिनाशक
- व्रण नाशक
- रेचक
- रक्त शोधक (विषहरक)
- क्षुधावर्धक – भूख बढ़ानेवाला
- शोथहर
- वेदनास्थापन
- कुष्ठघ्न
- वमनकारक
- रक्तशोधक
- मूत्रवर्धक
- गर्भाशय शोधक
- स्तन्य जनन
- ज्वरनाशक
- कटु पौष्टिक
- विषहर
- जीवाणुरोधी
चिकित्सकीय संकेत
काली जीरी की घरेलू उपाय और पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधियों में चिकित्सकीय संकेत की एक विस्तृत श्रृंखला है। यह मुख्य रूप से निम्नलिखित स्वास्थ्य स्थितियों में अनुशंसित है:-
- कफ वात जन्य विकार
- सूजन और वेदनायुक्त विकार
- फोड़े फुंसी और चर्म रोग
- बालों में जूं
- अग्निमांद्य (भूख की कमी)
- कृमि संक्रमण – गंडूपद (Round Worm) और तंतु कृमियों (Thread Worm))
- रक्त विकार
- मूत्राघात
- प्रसूति रोग
- श्वास
- कुष्ठरोग
- जीर्ण ज्वर
- सामान्य दुर्बलता
- खाज (खुजली)
- एक्जिमा
- सोरायसिस (विचर्चिका) (जब खुजली अधिक होती है)
- आंखों में खुजली
- कब्ज
- हिचकी
- स्तन दूध की समस्याएं – जब स्तन का दूध ताजा प्रतीत नहीं होता है, खराब गंध आती है और बच्चे को पचाने में परेशानी होती है, काली जीरी स्तन दूध की गुणवत्ता को बढ़ाता है और इन सभी लक्षणों को कम करता है।
- जीर्ण ज्वर
- आंतरिक फोड़ा
- आंतों में दर्द
- सर्प दंश
निम्नलिखित स्थितियों में त्वचा पर बाहरी रूप से काली जीरी चूर्ण का पेस्ट लगाया जाता है: –
- मस्से
- फोड़े
- मुंहासे या मुँहासा
- जुओं को मारने के लिए सिर पर लगाया जाता है
- ल्यूकोडर्मा (श्वित्र) (4 भाग काली जीरी + 1 भाग हरताल)
- त्वचा की सूजन
काली जीरी के लाभ, फायदे एवं प्रयोग
काली जीरी का प्रभाव लसीका, रक्त, वसा, त्वचा, आंत और गुर्दे पर दिखाई देता है। इसमें जीवाणुरोधी, रोगाणुरोधी और कृमिनाशक क्रियाऐं होती हैं। यह अनेकों रोगों से छुटकारा पाने में मदद करती हैं।
कृमि संक्रमण
काली जीरी मानव में आंतों के कीड़ों और परजीवी संक्रमण के विरुद्ध प्रभावी है। यह इन कीड़े प्रजातियों के खिलाफ शक्तिशाली औषधि है। मुख्यतः यह अपने शक्तिशाली कृमिनाशक गुणों के कारण गंडूपद (Round Worm) और तंतु कृमियों (Thread Worm) के खिलाफ अच्छे परिणाम देता है। आयुर्वेद में, इसका उपयोग गुड़ और वायविडंग के साथ निम्नलिखित तरीके से किया जाता है।
काली जीरी | 500 मिली ग्राम |
वायविडंग | 1000 मिली ग्राम |
गुड़ | 3 ग्राम |
इस मिश्रण को बताई गयी खुराक के अनुसार दिन में दो बार, भोजन के 2 घंटे बाद गर्म पानी के साथ देना चाहिए। |
अफारा, आँतों की सूजन और वायु
आँतों में वायु होने पर कुटकी के साथ काली जीरी का प्रयोग बहुत प्रभावशील सिद्ध हुआ है। इन दोनों जड़ी बूटियों में शक्तिशाली वायुनाशक और कफहर गुण होते है। यह योग पेट के अफारे को नष्ट करने के लिए उत्तम कार्यशील सिद्ध हुआ है।
इसके अतिरिक्त, इसमें पित्ताशय अर्थात gallbladder को संकुचित कर पित्त के बहाव को बढ़ाने वाले गुण भी होते हैं। जिसके कारण यह पित्ताशय के स्वास्थ्य में सुधार करती है और पित्त स्राव की मात्रा आंत्र में बढा देती है।
पित्त आंत्र में जाकर आंत्र की पेशियों की क्रमाकुंचन क्रिया अर्थात peristalsis को बड़ा देता है और जिससे कब्ज का भी उपचार हो जाता है। इसके अलावा यह कटु पौष्टिक होने के कारण आंत्र बल भी देता हैं। यह यकृत के कार्यों में भी सुधार करता है।
इस योग का एक सप्ताह तक प्रयोग करने से कब्ज, अफारा, गैस और पेट का भारीपन दूर होता है।
सर्वोत्तम परिणामों के लिए, 500 मिलीग्राम कालीजीरी में 500 मिलीग्राम कुटकी और 50 मिलीग्राम काली मिर्च मिलाकर उपयोग करना चाहिए। यह भोजन के बाद उषण जल के साथ दिन में दो बार लिया जा सकता है।
यदि रोगी को पेट में गैस हो अर्थात हवा जमा होने लगती हो, या फिर पेट में भारीपन और अफारा हो, यह योग उनके लिए भी अति लाभदायक सिद्ध हुआ है।
वजन घटाने के लिए काली जीरी
लोगों के बीच वजन घटाने के लिए काली जीरी अधिक प्रसिद्ध है। आमतौर पर प्रयुक्त सूत्र (formula) काली जीरी, अजवायन और मेथी का है: –
काली जीरी चूर्ण | 1 भाग |
अजवायन चूर्ण | 2 भाग |
मेथी चूर्ण | 4 भाग |
चूर्ण बनाकर इसमें इस बीजों के पाउडर को उपरोक्त अनुपात में मिश्रित करना चाहिए। | |
खुराक: काली जीरी, अजवायन और मेथी के फॉर्मूले को प्रतिदिन 3.5 ग्राम की मात्रा में भोजन के 1 से 2 घंटे बाद गर्म पानी के साथ लिया जा सकता है। |
वसा को कम करने के लिए, प्रतिदिन दो बार, एक ग्राम आरोग्यवर्धिनी वटी या कुटकी चूर्ण का उपयोग किया जा सकता है।
खाज-खुजली
किसी भी अंतर्निहित कारण से होने वाली तेज खुजली या प्रखर खाज (कंडू) के उपचार के लिए काली जीरी के साथ हल्दी, अजवायन, कुटकी और काली मिर्च का उपयोग किया जाता है। इसे निम्नलिखित अनुपात में मिश्रित किया जाना चाहिए:
काली मिर्च | 125 मिली ग्राम |
काली जीरी | 500 मिली ग्राम |
कुटकी | 500 मिली ग्राम |
हल्दी | 1000 मिली ग्राम |
अजवायन | 2000 मिली ग्राम |
गुड़ | 2000 मिली ग्राम |
इस मिश्रण को प्रतिदिन दो बार, भोजन करने के बाद पानी के साथ लेना चाहिए। | |
इस मिश्रण के परिणाम CETIRIZINE के साथ तुलनीय हैं, लेकिन यह खुजली से लंबे समय तक स्थायी राहत प्रदान करता है। |
एक्जिमा
जब शोषग्रस्त त्वचा प्रदाह में प्रभावित त्वचा से पानी के समान द्रव्य रिसता हो तो काली जीरी अत्यधिक प्रभावी है। इसका उपयोग मौखिक के साथ साथ बाहरी रूप से भी किया जाता है।
मौखिक रूप से, इसे प्रति दिन 500 मिलीग्राम की खुराक में लिया जाता है और बाहरी रूप से, इसका मलहम प्रभावित त्वचा पर लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त, यह रोगाणुओं को मारता है और सूजन को कम करता है। यह त्वचा के घावों के भरने में तेजी लाता है। कुछ आयुर्वेदिक चिकित्सक घावों को तेजी से भरने के लिए काली जीरी चूर्ण को नीम के तेल या निम्बादि तैलम में मिलाने की सलाह देते हैं।
श्वित्र या सफेद दाग
ल्यूकोडर्मा (श्वित्र या सफेद दाग) में, निम्नलिखित मिश्रण के अनुसार काली जीरी को प्रभावित त्वचा पर लगाया जाता है: –
काली जीरी | 50 ग्राम |
हरीतकी | 50 ग्राम |
बिभीतकी | 50 ग्राम |
अमलाकी | 50 ग्राम |
हरताल भस्म | 20 ग्राम |
गौ मूत्र | आवश्यकतानुसार (पेस्ट बनाने के लिए) |
काली जीरी का मिश्रण उपरोक्त अनुपात के अनुसार तैयार किया जाता है। इसे 1 से 3 महीने के लिए प्रतिदिन दो बार लगाया जाता है। |
अतिरिक्त लाभ के लिए, खाने के लिए बाबची (बाकुची) तेल की 5 से 10 बूंदों का उपयोग दूध और निम्नलिखित मिश्रण के साथ आंतरिक रूप से किया जाता है।
काली जीरी | 1 भाग |
वायविडंग | 1 भाग |
काले तिल | 1 भाग |
इन तीनों घटकों को समान मात्रा में मिलाया जाता है और प्रतिदिन दो बार 1.5 ग्राम की मात्रा में लिया जाता है। |
मधुमेह
काली जीरी का अध्ययन मधुमेह विरोधी क्षमता के लिए किया गया है। काली जीरी अग्न्याशय से इंसुलिन स्राव बढ़ाती है। अध्ययन के अनुसार, यह टाइप 2 मधुमेह में से हाइपरग्लेसेमिया (Hyperglycemia) को कम कर देता है। जब रक्त ग्लूकोज का स्तर 180 मिलीग्राम / डीएल से कम होता है तो यह अच्छी तरह से काम करता है। यदि, खाली पेट रक्त शर्करा का स्तर 180 मिलीग्राम / डीएल से अधिक है, तो रोगी को अन्य दवाओं की आवश्यकता भी होती है।
घरेलु चिकित्सा में, बहुमूत्र रोग (उदक मेह) के उपचार में काली जीरी का उपयोग मेथी के साथ किया जाता है।
मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
काली जीरी की सामान्य खुराक इस प्रकार है। | |
शिशु और बच्चे | वजन 10 मिलीग्राम प्रति किलो (लेकिन कुल खुराक प्रति दिन 1 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए) |
व्यस्क | प्रतिदिन दो बार 500 मिली ग्राम से 2 ग्राम |
स्तनपान | प्रतिदिन दो बार 250 मिली ग्राम से 500 मिली ग्राम |
अधिकतम संभावित खुराक | 4 ग्राम प्रतिदिन (विभाजित मात्रा में) |
*दिन में दो बार ताजे या गर्म पानी के साथ | |
उपयोग करने का उपयुक्त समय: भोजन के बाद |
काली जीरी के नुकसान
काली जीरी अविषाक्त परन्तु वमनकारी जड़ी बूटी है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ संवेदनशील लोगों में मतली या उल्टी हो सकती है। अन्यथा, अधिकांश वयस्कों में यह अच्छी तरह से सहनीय है। इसके निम्नलिखित दुष्प्रभाव होते है: –
- मतली (सामान्य)
- उल्टी (सामान्य)
- दस्त (असामान्य)
- चक्कर आना (असामान्य)
- पेट में ऐंठन (दुर्लभ, लेकिन प्रतिदिन दो बार 3 ग्राम से अधिक खुराक लेने पर होता है)
वयस्कों में, यदि खुराक प्रति दिन 1 ग्राम (विभाजित मात्रा में लेने पर) से कम होती है, तो इसका कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन जब इसकी खुराक बढ़ जाती है, तो इसकी वमनकारी क्रिया भी बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप मतली और उल्टी हो जाती है।
काली जीरी से एलर्जी प्रतिक्रिया
काली जीरी की एलर्जी प्रतिक्रियाएं बहुत दुर्लभ हैं, लेकिन यदि किसी को इसका उपयोग करने के बाद निम्नलिखित लक्षण होते हैं, तो उस व्यक्ति काली जीरी से एलर्जी हो सकती है और इसे तुरंत रोकने की आवश्यकता है।
- त्वचा पर चकत्ते
- जीभ पर सूजन
- पेट में दर्द
- होंठ के चारों ओर लाली
- मुंह में झुनझुनी
- आँखों में पानी आना
गर्भावस्था और स्तनपान
गर्भावस्था: काली जीरी में मध्यम प्रकार के रेचक गुण होते हैं, इसलिए इससे दस्त हो सकते हैं और यह गर्भाशय संकुचन को प्रेरित कर सकता है। इसलिए, गर्भावस्था में इसके उपयोग से बचना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार, इसमें कटु रस और ऊष्ण वीर्य होता है, जो गर्भावस्था में उपयुक्त नहीं है।
स्तनपान: स्तनपान कराते समय काली जीरी का उपयोग संभवतः सुरक्षित है और दूध की गुणवत्ता में सुधार के लिए इसके उपयोग की सलाह दी जाती है। इस की खुराक प्रतिदिन दो बार 250 मिलीग्राम से 500 मिलीग्राम होनी चाहिए। खुराक प्रति दिन 1 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए।
विपरीत संकेत (Contraindications)
- रक्तस्राव विकार
- गर्भावस्था
सूचना स्रोत (Original Article)
- Kali Jeeri (Kalijiri) – Centratherum Anthelminticum – AyurTimes.Com