लौह भस्म
लौह भस्म लोहे से बनायी गयी आयुर्वेदिक औषधि है। लौह भस्म लोहे (आयरन) का ऑक्साइड है और आयुर्वेद में इसका महत्त्वपूर्ण उपयोग है। यह रक्त धातु में वृद्धि करता है जिसके कारण शरीर को बल मिलता है। लौह भस्म एक बहुत ही उत्तम रसायन है जो पूरे स्वास्थ्य को अच्छा करता है।
लौह भस्म का प्रयोग एनीमिया, सामान्य दुर्बलता, यकृत वृद्धि, प्लीहा वृद्धि, और हर्निया के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त आयुर्वेदिक चिकित्सा में इसे खून की कमी, चक्कर आने, बालों का गिरना, याददाश्त में कमी, नेत्र रोग, त्वचा रोग आदि में किया जाता है।
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लौह भस्म के घटक एवं निर्माण विधि
लौह भस्म को शुद्ध लोहे से बनाया जाता है। इसका निर्माण करने की कई भिन्न भिन्न विधियां हैं। लौह भस्म निस्तापन (जल कर राख) किया हुआ लोहा है। लौह भस्म के निर्माण में कई चरण सम्मिलित हैं – जैसे शोधन, मारण, चालन, धोवन, गलन, पुत्तन और मर्दन।
लौह भस्म को आयुर्वेदिक विधि से बनाने के लिए पहले उसका शोधन किया जाता है।
रासायनिक संरचना
मौलिक लोहा इसका प्राथमिक घटक है।
लौह भस्म बनाने की विभिन्न विधियां
लौह भस्म बनाने की कई विभिन्न विधियां हैं। किसी भी एक विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
- त्रिफला – 100 ग्राम लौह पत्र को 800 मिलीलीटर गौ मूत्र में उबाला जाता है, जब वह 200 मिलिलीरेर रह जाए तो उसे छान लें। इस क्रिया को 21 दिन तक किया जाता है। इसके पश्चात इसे एक बंद बर्तन में 800 – 900 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर 4 – 5 घंटे के लिए गरम किया जाता है। इसे बहार निकालकर त्रिफला और गौ मूत्र के साथ काढ़ा बनाया जाता है। एक दिन बाद फिर इसे बंद बर्तन में रखकर उसी प्रकार गरम किया जाता है। लौह भस्म प्राप्त करने के लिए इस क्रिया को 21 बार किया जाता है।
- बाजीकरण लौह भस्म – शुद्ध लोहा, सफ़ेद संखिया, तबकिया हरताल, शुद्ध गंधक और शुद्ध पारा लें। इन सब को अच्छी तरह से खरल कर लें। फिर कुंवार का रास मिलकर खरल करें और गोल टिकिया बनाकर तेज धुप में सुखायें। फिर इसमें पुत्तन की क्रिया 16 बार करें।
- शुद्ध लोहे के बारीक चूर्ण में शिंगरफ और कुंवार का रास मिलाकर 12 घंटे तक घुटाई करें, फिर छोटी छोटी टिकिया बनाकर तेज भूप में सुखायें। इसके बाद इसपर 12 बार पुत्तन की क्रिया करें। त्रिफला, गौ मूत्र , केला और जामुन की छाल मिलाकर क्रिया करने से नीले रंग की उत्तम लौह भस्म प्राप्त होती है।
- सोमामृत लौह भस्म – शुद्ध लोहा के चूर्ण, पारद और गंधक में कुंवार का रस मिलाकर 6 घंटे तक खरल करके शुद्ध जल से धो लें। फिर कुंवार के रस में 12 घंटे खरल करके गोला बना लें। इस गोले पर एरंड के पत्तों को लपेटकर सूत से बाँध दें और ताँबे के बंद डब्बे में रखकर टेक धुप में 6 घंटे तक सुखाएं। फिर अनाज के कमरे में 40 दिन तक दबा कर रखें। फिर बाहर निकालकर बाकी क्रियाएं करके बारीक कपडे से छान लें, काले रंग की उत्तम लौह भस्म प्राप्त होगी।
इसके अतिरिक्त लौह भस्म अन्य तरीकों से भी बनायीं जाती हैं।
लौह भस्म के लक्षण
इस विधि से जब लौह भस्म बन जाती है तो इसका मानक स्तर जांचने के लिए कुछ प्रयोग किये जाते हैं।
रेखापुरन- शुद्ध लौह भस्म को आप अपनी उँगलियों पर मलेंगे तो वह टेलकॉम पाउडर की तरह इतनी महीन होगी की वो आप की ऊँगली की रेखाओं में घुस जायेगी।
निसचन्द्रिकरण- शुद्ध लौह भस्म अपनी धातु वाली चमक खो चुकी होगी।
अपुनर्भव- भस्म इस प्रकार बनानी चाहिए कि वो पुनः धातु के रूप में प्राप्त ना की जा सके।
वरितर- शुद्ध लौह भस्म को स्थिर पानी में डालने से, आधे से अधिक भस्म ऊपर तैरती रहेगी।
लौह भस्म के औषधीय गुण
लौह भस्म में निम्नलिखित औषधीय गुण हैं:
- यह रक्त स्तंभक और रक्त वर्धक है।
- यह एक हेमाटिनिक औषधि है, जो रक्त में हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाती है।
- यह भूख बढ़ाता है और अग्निवर्धक है।
- यह शरीर की कांति बढ़ाती है।
- यह आयु, बल और वीर्य बढ़ाने वाली औषधि है।
- यह वातकारक है।
- यह कफ और पित्त रोगों का नाश करती है।
- यह नेत्रों को लाभ देती है।
- यह औषधि पांडु रोग में लाभ देती है।
लौह भस्म के चिकित्सीय संकेत
लौह भस्म निम्नलिखित रोगों में लाभ देती है।
- आयरन की कमी से एनीमिया
- सामान्य दुर्बलता
- यकृत वृद्धि
- प्लीहा वृद्धि
- हर्निया
- स्वप्न दोष
- नपुंसकता
- खून बहने विकारों के कारण कमजोरी
- अग्निमांध, अतिसार और अम्लपित्त
- खुनी बवासीर
- कृमि
- त्वचा विकार
- शरीर में सूजन
- मेदोदोष
लौह भस्म के औषधीय उपयोग और स्वास्थ्य लाभ
लौह भस्म सिकोड़नेवाली क्रिया करती है, इसलिए यह अतिरिक्त वसा को जलाती है। इस प्रकार, यह मोटापे में भी उपयोगी है। लौह भस्म केंद्रीय मोटापे में अच्छी तरह से काम करता है और पेट की चर्बी को कम करता है। आयुर्वेद में, यह खून, मांसपेशियों, दिल, जिगर, तिल्ली और पेट के रोगों के लिए प्रयोग किया जाता है। लौह भस्म एक उत्तम रसायन है जो पूरे स्वस्थ्य को बेहतर करती है।
लोहे की कमी से होने वाला एनीमिया
लौह भस्म में उच्च शोषणीय (जो सहजता से सोखा जा सके) मौलिक लोहे के सूक्ष्म कण होते हैं। इसलिए, यह लोहे की कमी से होने वाले एनीमिया में मदद करते हैं। आयुर्वेदिक में एनीमिया के लिए प्रयोग होने वाली औषधियों में मुख्य घटक के रूप में लौह भस्म होती है।
पेट के कीड़े के कारण होने वाला एनीमिया
कुछ रोगियों में, जब पेट के कीड़े उनकी आंतों में मौजूद होते हैं तो एनीमिया हो सकता है। आम तौर पर, हुकवर्म आंतों की दीवारों से खून पीते हैं, तो इस कारण खून की कमी से एनीमिया होता है।
इस मामले में, हमें परजीवी प्रकोप के इलाज की आवश्यकता होती है और साथ ही हमें शरीर में लोहे के नुकसान की भरपाई करने के लिए लोहे के पूरक की आवश्यकता होती है। इस प्रयोजन के लिए, निम्नलिखित संयोजन आयुर्वेद के अनुसार, उपयोगी है।
लौह भस्म | 50 मिलीग्राम |
बाय विडंग के बीज का चूर्ण | 1 ग्राम |
अजवाइन का सत्व | 50 मिलीग्राम |
रक्तस्राव विकार
लौह भस्म रक्तस्राव के विकारों के लिए फायदेमंद है। हालांकि, यह रक्तस्राव को कम नहीं कर सकती, परंतु लौह भस्म खून बहने और उसके विकारों की वजह से लोहे की हानि की क्षतिपूर्ति कर सकती है। रक्तस्राव को रोकने के लिए आयुर्वेद में अन्य औषधियां है जिनमें रक्तचन्दनादि क्वाथ, मोचरस आदि हैं। लोहा भस्म को बेचैनी, दुर्बलता, चक्कर और थकान जैसे लक्षण को कम करने के लिए इन उपायों के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है।
भूख ना लगना, अपच और पेट का बढ़ाव
लौह भस्म में पाचन उत्तेजक गुण है और भूख को बढ़ाते हैं। यह भूख बढ़ाकर, पाचन में मदद करके और पेट में गैस कम करके भूख ना लगने, अपच और पेट बढ़ाव के नुकसान में मदद करता है।
मोटापा या वजन कम होना
लौह भस्म को वजन कम करने के लिए त्रिफला चूर्ण या त्रिफला गुग्गुलु के साथ प्रयोग किया जाता है। यदि आप लोहे की कमी से होने वाले एनीमिया और मोटापे से एक साथ पीड़ित हैं, तो यह वजन घटाने का एक अच्छा उपाय है। आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया भी मोटापे के साथ जुड़ा हुआ है।
लौह भस्म की सेवन विधि और मात्रा
लौह भस्म की खुराक एक दिन में दो बार 125 मिलीग्राम से 15 मिलीग्राम के बीच होती है। लौह भस्म की अधिकतम खुराक प्रति दिन 250 मिलीग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए।
इसे परंपरागत रूप से शहद, घी, त्रिकटु चूर्ण, त्रिफला चूर्ण, हल्दी के साथ किया जाता है।
लौह भस्म की गलत सेवन विधि से रोगी को हानि हो सकती है, इसलिए चिकित्सक की देख रेख में ही इसका उपयोग करें। लौह भस्म की सही खुराक इस प्रकार है:
पूरक खुराक | 15 से 30 मिलीग्राम |
चिकित्सीय खुराक | 15 से 125 मिलीग्राम |
उपयोग की अधिकतम अवधि | 60 दिन से कम |
आयुर्वेद में लिखा है कि लौह भस्म के सेवनकाल में सफ़ेद कोहंड़ा, तिल का तेल, उरद, राई, शराब, खटाई, मछली, बैंगन, करेले को नहीं खाना चाहिए।
दुष्प्रभाव
लौह भस्म चिकित्सीय देखरेख में ली जाए तो अधिकतर लोगों के लिए पूरक और चिकित्सीय खुराक में सुरक्षित है। यदि लौह भस्म आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित शास्त्रीय विधि के अनुसार ना बनायी जाए तो लौह भस्म के निम्नलिखित दुष्प्रभाव हो सकते हैं:
- काला मल होना
- पेट खराब होना
- मतली
- कब्ज (बहुत कम और केवल कमजोर लोगों में होती है)
- दस्त (दुर्लभ)
गर्भावस्था और स्तनपान
लौह भस्म को गर्भावस्था में लोहे की पूरकता के लिए प्रयोग किया जाता है। यह गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान पूरक खुराक के रूप में सुरक्षित है।
मतभेद
निम्नलिखित रोगों में आपको लौह भस्म का उपयोग नहीं करना चाहिए।
- पेट या आंतों के अल्सर
- पेट की सूजन से सम्बंधित रोग जिसमें क्रोहन रोग और अल्सरेटिव कोलाइटिस शामिल हैं
- थैलेसीमिया या लोहे का अधिभार
दवाओं का पारस्परिक प्रभाव
लौह भस्म निम्नलिखित दवाओं के साथ क्रिया करके शरीर में उनके प्रभाव और अवशोषण को कम कर देती है।
- क्विनोलोन एंटीबायोटिक
- टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक
- बिसफोस्फोनेट्स
- लेवोडोपा
- लेवोथीरोक्सिन
- मिथाइलडोपा
- मयकोफेनोलते मोफेटिल
- पेनिसिल्ल्मिने
सावधानी
- इस औषधि को केवल सख्त चिकित्सा देखरेख में लिया जाना चाहिए।
- आवश्यकता से अधिक खुराक गंभीर साइड इफेक्ट जैसे गैस्ट्राइटिस का कारण बन सकता है।
- चिकित्सक की सलाह के अनुसार, सटीक खुराक और सीमित अवधि के लिए यह औषधि लें।
- बच्चों की पहुंच और दृष्टि से दूर रखें।
संदर्भ
- Lauh Bhasma – AYURTIMES.COM