ऋतु हरीतकी – सदा स्वस्थ रहने के लिए कैसे करें हरड़ का प्रयोग
स्वास्थ्य लाभ के लिए ऋतु के अनुसार हरीतकी (हरड़) का सेवन उपयुक्त अनुपान के साथ करने की विधि को आयुर्वेद में ऋतु हरीतकी कहा जाता है। आयुर्वेद की मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक एवं मानसिक प्रकृति के अनुसार और वातावरण में होने वाले बदलाव के अनुसार औषधि और उनके अनुपानों में भी अंतर आता है। औषधि अच्छे गुणों के लिए हमें इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
हरीतकी (हरड़) के साथ भी कुश ऐसा ही है। इसका प्रयोग मौसम (ऋतू) के अनुसार करना अनुसार करना चाहिए। हरीतकी में रसायन गुण हैं। जिसके कारण इसका प्रयोग सभी ऋतुओं में किया जा सकता है परतु अनुपान में अंतर आ जाता है। हरड़ का सेवन ऋतू अनुसार निम्नलिखित अनुपानों के साथ करना चाहिए:
ऋतु | अनुपान |
वर्षा ऋतु | सैंधव लवण |
शरद ऋतु | खांड (शर्करा) |
हेमंत ऋतु | शुंठी |
शिशिर ऋतु | पिप्पली |
वसंत ऋतु | क्षौद्रमधु |
ग्रीष्म ऋतु | नवीन गुड़ |
नोट: अनुपान का अर्थ है जिसके साथ औषधि का सेवन करना चाहिए।
हरड़ सेवन के अयोग्य व्यक्ति
चरक संहिता के अनुसार निम्नलिखित व्यक्तियों को हरीतकी सेवन नहीं करना चाहिए:
- अजीर्ण के रोगी
- अधिक मैथुन करने वाले
- भूख, प्यास व गर्मी से पीड़ित लोगों
- मधपान करने वाले
- रूक्ष पदार्थों का सेवन करने वाले
- विषपान करने से कृशित शरीर वाले