भगन्दर रोग और इस के लक्षण, कारण, जाँच और निदान
भगन्दर गुद प्रदेश में होने वाला एक नालव्रण है जो भगन्दर पीड़िका (abscess) से उत्पन होता है। इसे इंग्लिश में फिस्टुला (Fistula-in-Ano) कहते है। यह गुद प्रदेश की त्वचा और आंत्र की पेशी के बीच एक संक्रमित सुरंग का निर्माण करता है जिस में से मवाद का स्राव होता रहता है। यह बवासीर से पीड़ित लोगों में अधिक पाया जाता है। सर्जरी या शल्य चिकित्सा या क्षार सूत्र के द्वारा इस में से मवाद को निकालना पड़ता है और कीटाणुरहित करना होता है। आमतौर पर यही चिकित्सा भगन्दर रोग के इलाज के लिए करनी होती है जिस से काफी हद तक आराम भी आ जाता है।
Contents
भगन्दर के बारे में अधिक पढ़ें
भगन्दर रोग गुदा के पास हुए किसी फोड़े से शुरू होता हैं और ये फोड़ा गुदा में किसी इन्फेक्शन से हो सकता हैं। यह संक्रमण गुदा के आस-पास फैल सकता हैं, फोड़े में दर्द और सूजन होनी शुरू होती हैं और कुछ लोगो को इसमें बुखार की भी शिकायत होती हैं। फोड़े में पीप (pus) भर जाती हैं जिसकी बजह से उस जगह पर एक नाली बन जाती हैं और जब इसका ठीक तरह से उपचार नही हो पाता तो वो फिस्ट्यूला बन जाता हैं। भगन्दर रोग ज्यादातर 30 से लेकर 50 तक की उम्र के लोगो में देखने को मिलता हैं और पुरुषो के मुकाबले महिलाये इस रोग से कम पीड़ित होती हैं।
भगन्दर रोग के लक्षण (Fistula-in-Ano Symtopms)
- बार-बार गुदा के पास फोड़े का निर्माण होता
- मवाद का स्राव होना
- मल त्याग करते समय दर्द होना
- मलद्वार से खून का स्राव होना
- मलद्वार के आसपास जलन होना
- मलद्वार के आसपास सूजन
- मलद्वार के आसपास दर्द
- खूनी या दुर्गंधयुक्त स्राव निकलना
- थकान महसूस होना
- इन्फेक्शन (संक्रमण) के कारण बुखार होना और ठंड लगना
भगन्दर रोग के कारण
- गुदामार्ग के पास फोड़े होना।
- गुदामार्ग का अस्वच्छ रहना।
- पुरानी कव्ज।
- वेक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण।
- अनोरेक्टल कैंसर से।
- गुदा में खुजली होने या किसी और कारण से गुदा में घाव का हो जाना।
- ज्यादा समय तक किसी सख्त या ठंडी जगह पर बैठना।
- इसके अलावा यह रोग बूढ़े लोगो में गुदा में रक्तप्रवाह के घटने से हो सकता हैं।
जाँच और निदान
- फिस्चुला की जाँच के लिए और इसके लक्षणों का पता लगने के बाद रेक्टल एग्जामिनेशन की सलाह दी जाती हैं ।
- इसके अलावा डिजिटल गुदा परीक्षण,फिस्टुलोग्राम भी कराया जाता हैं।
- फिस्टुला के मार्ग को देखने के लिए MRI की सलाह दी जाती हैं।
डायग्नोसिस को पक्का करने के लिए यह टेस्ट किये जाते हैं
- शारीरिक और रेक्टल परिक्षण ।
- परोटोस्कोपी ।
- अल्ट्रासाउंड ।
- मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग मतलव (MRI )
- टोमोग्राफी और सिटी स्कैन।