मुक्ताशुक्ति भस्म और मुक्ताशुक्ति पिष्टी के लाभ, औषधीय प्रयोग, मात्रा एवं दुष्प्रभाव
मुक्ताशुक्ति मोती सीप के खोल का आयुर्वेदिक नाम है। मुक्ताशुक्ति भस्म और मुक्ताशुक्ति पिष्टी दोनों में मोती सीप के खोल का कैल्शियम होता है। लेकिन दोनों अलग-अलग तरीकों से संसाधित होते हैं। दोनों के समान स्वास्थ्य लाभ और औषधीय उपयोग हैं। इनके बीच मूलभूत आयुर्वेदिक अंतर यह है की मुक्ताशुक्ति पिष्टी का उपयोग निराम पित्त की स्थिति में और मुक्ता शुक्ति भस्म का उपयोग साम पित्त की स्थिति में किया जाता है। साम पित्त का अर्थ है कि पित्त का आम (Ama) विषाक्त पदार्थों (टॉक्सिन्स) से संबद्ध।
मुक्ताशुक्ति भस्म और मुक्ताशुक्ति पिष्टी सीने में जलन, मुँह के खट्टे स्वाद, अपच, पेट दर्द, यकृत में दर्द, क्षुधामान्द्य, भूख की कमी, खांसी, कैल्शियम की कमी, ऑस्टियोपोरोसिस (अस्थि सुषिरता), ऑस्टियोपेनिया, आदि में लाभदायक हैं।
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घटक द्रव्य (संरचना)
मुक्ता शुक्ति भस्म और मुक्ता शुक्ति पिष्टी समान घटक वाले आयुर्वेदिक निर्माण हैं, लेकिन इनका निर्माण भिन्न विधियों से किया जाता है। भस्म बनाने के लिए अग्नि का उपयोग किया जाता है और पिष्टी के निर्माण के लिए मुक्ताशुक्ति को गुलाब जल के साथ घोंटा जाता है।
मुक्ताशुक्ति की शुद्धि (मोती सीप का खोल)
मुक्ताशुक्ति को 3 दिन के लिए छाछ में भिगो दिया जाता है। छाछ को प्रतिदिन बदला जाता है। दिन के समय इस खुले बर्तन को धूप में रखना चाहिए। 3 दिनों के बाद, मुक्ताशुक्ति को गर्म पानी से धोया जाता है। मोती सीप के पीछे के काले भाग को चाकू या किसी अन्य साधन का उपयोग करके हटाया जाना चाहिए। मोती सीप के खोल के सफ़ेद हिस्से से ही भस्म या पिष्टी का निर्माण करना चाहिए।
मुक्ताशुक्ति भस्म
घटक | मात्रा |
शुद्ध मुक्ताशुक्ति | 200 ग्राम |
एलो वेरा गूदा | 800 ग्राम |
नींबू का रस | आवश्यकतानुसार |
शुद्ध मुक्ताशुक्ति को मिटटी के बर्तन में एलो वेरा गूदे के बीच में रखें। गजपुट की विधि अनुसार इसे आग पर रखें। अब, मुक्ताशुक्ति को नीम्बू के रस के साथ फिर से संसाधित करें और घोटें। फिर इसके छोटे केक बना लें। अब इसे फिर से गजपुट के सिद्धांत के अनुसार आग पर रखें। इस प्रक्रिया के बाद, मुक्ताशुक्ति भस्म को कूट कर महीन चूर्ण बना लें और अब यह उपयोग के लिए तैयार है।
मुक्ताशुक्ति पिष्टी
घटक | मात्रा |
शुद्ध मुक्ताशुक्ति (शुद्ध मोती सीप के खोल) | 200 ग्राम |
गुलाब जल | आवश्यकतानुसार |
शुद्ध मुक्ताशुक्ति (शुद्ध मोती सीप के खोल) को कूट कर महीन चूर्ण बना लें और फिर इस चूर्ण को गुलाब जल में तीन सप्ताह तक घोटें।
रासायनिक संरचना
मुक्ताशुक्ति (शुद्ध मोती सीप का खोल) में रासायनिक शामिल हैं:
- कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3)
- कोंचिओलिन
औषधीय गुण
मुक्ताशुक्ति भस्म और पुष्टि में निम्नलिखित उपचार के गुण हैं।
- प्रबल अम्लत्वनाशक
- अतालता नाशक
- गठिया नाशक
- हिस्टामीन के प्रभावों को निष्फल करने वाला
- दाहक विरोधी
- प्रतिउपचायक
- कासरोधक
- व्रण नाशक
- पाचन उत्तेजक
- परिवर्तनाकांक्षी
आयुर्वेदिक गुण
वीर्य | शीत |
विपाक | मधुर |
प्रभाव – उपचारात्मक प्रभाव | प्रबल अम्लत्वनाशक |
दोष कर्म (भावों पर प्रभाव) | पित्त दोष (PITTA DOSHA) और कफ दोष (KAPHA DOSHA) को शांत करता है |
धातु प्रभाव | रस, रक्त, मंसा और अस्थि |
अंगों के लिए लाभदायक | पेट, यकृत, प्लीहा और आंत |
क्रिया का तंत्र
आयुर्वेद के अनुसार, दोनों मुक्ता शुक्ति भस्म और पिष्टी उसके शीत वीर्य के कारण बढ़े हुए पित्त और गर्मी को शांत करते हैं। यह सभी प्रकार के पित्त विकारों में लाभदायक है।
चिकित्सीय संकेत
मुक्ताशुक्ति भस्म और पिष्टी स्वास्थ्य की निम्नलिखित स्थितियों में सहायक हैं।
- अम्लपित्त
- जीर्ण जठरशोथ
- ग्रहणी व्रण
- सीने में जलन
- पाचक व्रण
- मुँह के छाले
- सव्रण बृहदांत्रशोथ
- भूख में कमी
- अपच
- गैस या पेट फूलना
- सूजन
- पेट अफरना
- व्रण
मुक्ता शुक्ति भस्म के लाभ एवं प्रयोग
मुक्ता शुक्ति भस्म मुख्य रूप से पित्त दोष (PITTA DOSHA) को कम कर देता है यह कफ दोष (KAPHA DOSHA) को शांत करता है। यह हड्डियों और जोड़ों के लिए फायदेमंद है। यह पेट, यकृत, प्लीहा, और ग्रहणी आदि अंगों पर काम करता है।
अम्लपित्त
मुक्ता शुक्ति भस्म अम्लपित्त की उत्तम आयुर्वेदिक औषधि (ayurvedic medicine) है। यह पेट में एसिड को बेअसर करता है। इस प्रकार, यह छाती और गले में जलन को कम करने में मदद करता है।
ऑस्टियोपोरोसिस
मुक्ता शुक्ति भस्म कैल्शियम कार्बोनेट और कोनकॉलिन प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है। इसका प्रयोग हडजोड चूर्ण (Cissus Quadrangularis) के साथ किया जाता है।
मात्रा और सेवन विधि
मुक्ता शुक्ति भस्म और पिष्टी की सामान्य खुराक निम्नानुसार है:
शिशु | 60 से 125 मिलीग्राम * |
बच्चे | 125 से 250 मिलीग्राम * |
वयस्क | 250 से 500 मिलीग्राम * |
गर्भावस्था | 125 से 250 मिलीग्राम * |
वृद्धावस्था | 125 से 250 मिलीग्राम * |
अधिकतम संभावित खुराक (प्रतिदिन या 24 घंटे में) | 1000 मिलीग्राम (विभाजित मात्रा में) |
* दिन में दो बार गुलकंद, शहद, पानी या रोग के अनुसार उचित अनुपान के साथ |
संदर्भ
- Muktashukti Bhasma & Mukta Shukti Pishti– AYURTIMES.COM