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मुलेठी के फायदे एवं उपयोग, गुण और मुलेठी के नुकसान

आयुर्वेद में मुलेठी को यष्टिमधु भी कहते हैं। यह भारतीय औषधियों, घरेलू उपचार, लोक औषधि और आयुर्वेद में प्रयुक्त होने वाली एक महत्वपूर्ण जड़ी बूटी है। मुलेठी अति अम्लता, व्रण, सामान्य दुर्बलता, जोड़ों के दर्द और कुछ अन्य रोगों में प्रयुक्त की जाती है। इसके औषधीय गुणों के कारण यह इन रोगों में लाभकारी होती है। यह एक अच्छी दाह नाशक और पीड़ाहर औषधि है। यह अम्लत्वनाशक और कामोद्दीपक के रूप में भी कार्य करती है।

Contents

रासायनिक संरचना

मुलेठी (यष्टिमधु) में एक मीठा पदार्थ और एक सैपोनिन ग्लाइकोसाइड (saponin glycoside) –  ग्लाइसिरहीजिन (glycyrrhizin या glycyrrhizic acid) होता है। यह चीनी की तुलना में 30 से 50 गुना अधिक मीठा होता है और मुंह में इसकी मिठास का स्वाद चीनी से अधिक समय तक रहता है। हाइड्रोलिसिस (hydrolysis) क्रिया के दोरान, ग्लाइकोसाइड एग्लीकोन ग्लिसेट्रेटिनीक एसिड (aglycone glycyrrhetinic acid) में परिवर्तित हो जाता है, जिस से वह अपनी मिठास खो देता है। मुलेठी के पेड़ का पीला रंग इसमें पाये जाने वाले रसायन, चालकोने ग्लाइकोसाइड इसोलिक्विरीटिन (Chalcone Glycoside Isoliquiritin) के कारण होता है।

औषधीय गुण

मुलेठी (यष्टिमधु) में निम्नलिखित औषधीय गुण होते हैं।

  1. अम्लत्वनाशक
  2. व्रण नाशक
  3. दाह नाशक
  4. प्रतिउपचायक
  5. अल्जाइमर विरोधी
  6. स्थूलता नाशक
  7. वसा या मोटापा उत्पन्न करने वाले का विरोधी
  8. मेदार्बुदजनक विरोधी
  9. कैंसर विरोधी
  10. वाहिकाजनक विरोधी (कैंसर या ट्यूमर में)
  11. प्रजनन-शील विरोधी (कैंसर या ट्यूमर में)
  12. दमा विरोधी
  13. जीवाणुरोधी
  14. पीड़ाहर
  15. गठिया नाशक
  16. अवसादरोधी
  17. प्रतिउपचायक
  18. तनाव विरोधी
  19. कासरोधक
  20. कामोद्दीपक
  21. शांतिदायक
  22. कफोत्सारक
  23. इम्यूनो-अधिमिश्रक (Immuno-modulator)
  24. सौम्य एस्ट्रोजेनिक – यह महिलाओं में एस्ट्रोजेन स्तर को प्रभावित कर सकता है।

आयुर्वेदिक गुण

रस                        मधुर
गुण गुरु और स्निग्ध या स्नेह
वीर्य शीत
विपाक मधुर
दोष कर्म (विकारों पर प्रभाव) वात (Vata) और पित्त (Pitta) को शांत करता है
चिकित्सीय प्रभाव – प्रभाव कायाकल्प और पूरक
धातु प्रभाव सभी – रस, रक्त, मंसा, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र
अंगों के लिए लाभदायक पेट, आंतें, यकृत, मस्तिष्क, हृदय और रक्त वाहिकाएं

चिकित्सकीय संकेत

निम्नलिखित स्वास्थ्य स्थितियों में मुलेठी सहायक है।

एलर्जी एलर्जिक राइनाइटिस (Allergic rhinitis) या पीड़ा ज्वर
मस्तिष्क और मन का स्वास्थ्य अवसाद, भावनात्मक तनाव, स्मृति हानि
पाचन स्वास्थ्य अम्लता, जीर्ण जठरशोथ, नासूर, कब्ज, पक्वाशय संबंधी अल्सर, मसूड़े की सूजन, सीने में जलन, अपच, पाचक व्रण, मुँह के छाले, दन्त क्षय, सव्रण बृहदांत्रशोथ, हेपेटाइटिस और पित्ताशय की थैली की सूजन
ह्रदय स्वास्थ्य कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर
हार्मोन एडिसन का रोग
जोड़, मांसपेशियां और हड्डियां जोड़ों की सूजन, स्नेहपुटीशोथ ( Bursitis), फ़िब्रोम्यल्जिया (Fibromyalgia), गठिया
श्वसन संबंधी स्वास्थ्य खाँसी, दमा, ब्रोंकाइटिस
त्वचा और बाल गंजापन, खुजली, अपरस

अन्य

सामान्य संकेत सामान्य दुर्बलता, गंभीर थकान, शारीरिक थकावट
संक्रमण पैरों का दाद, आंत्र संक्रमण, नेत्रश्लेष्मलाशोथ, गले में खराश
महिला स्वास्थ्य रजोनिवृत्ति, अत्यधिक गर्भाशय रक्तस्राव
पुरुष स्वास्थ्य पौरुष ग्रंथि बढ़ना

मुलेठी के फायदे एवं उपयोग

मुलेठी (यष्टिमधु) के मुख्य लाभकारी प्रभाव पाचन तंत्र और श्वसन प्रणाली पर होते हैं। यह पेट के लक्षण जैसे सीने में जलन, पेट में जलन, पाचक और ग्रहणी व्रण, पेट दर्द, उर्ध्वगत पित्त (GERD) और जीर्ण जठरशोथ से मुक्त होने में सहायता करता है।

मुलेठी में ग्लाईसीरहीजिन होता है, जो स्वाद में मीठा होता है और जठरांत्र संबंधी मार्ग की सूजन को कम कर देता है। यह पाचन तंत्र से संबंधित निम्नलिखित बीमारियों में लाभदायक होता है।

अति अम्लता और जठरशोथ

मुलेठी एक अम्लत्वनाशक के रूप में काम करता है और पेट में मुक्त और कुल एचसीएल (HCL) के स्तर को कम कर देता है। यह पाचक श्लेष्म में अम्लीय जलन को कम करता है। यह तीव्र और जीर्ण जठरशोथ में प्रभावी है।

भारतीय चिकित्सा में, मुलेठी (यष्टिमधु) को आंवला चूर्ण (Indian Gooseberry), धनिया बीज चूर्ण, गिलोय और मुस्तक के चूर्ण के साथ जठरशोथ और अति अम्लता से राहत पाने के लिए उपयोग किया जाता है।

पेट का अल्सर

मुलेठी में दाह नाशक और व्रण नाशक गुण होते हैं। यह पेट के परत की सूजन को कम करता है। विभिन्न शोधों में व्रण और सूजन के रोगों में इसके महत्व को बताया गया है।

पेट में व्रण के विरुद्ध इसका सुरक्षात्मक प्रभाव होता है। यह एस्पिरिन (aspirin) और अन्य NSAID द्वारा प्रेरित जठरीय व्रणोत्पत्ति की संभावना को कम कर देता है।

ग्रहणी संबंधी व्रण में, यष्टिमधु में उपचारात्मक गुण होते है। यह गैस्ट्रिक श्लेष्म को ठीक करता है और व्रणोत्पत्ति को कम करता है।

हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (Helicobacter pylori) संक्रमण द्वारा प्रेरित पाचक व्रण

मुलेठी सत्त में कुछ फ्लैवोनॉइड (flavonoids) होते हैं, जो एंटी-हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (Anti-Helicobacter pylori) के रूप में कार्य करते हैं। यष्टीमधु में पाए जाने वाले ग्लेब्रिडीन (glabridin) और ग्लबरीन (glabrene) जैसे फ्लैवोनॉइड का हेलिकोबैक्टर पाइलोरी के खिलाफ निरोधात्मक प्रभाव होता है। इसलिए, यष्टिमधु का उपयोग हेलिकोबैक्टर पाइलोरी संक्रमण के विरुद्ध और उसके कारण होने वाले पेप्टिक अल्सर में किया जा सकता है।

छाले युक्त व्रण (Aphthous ulcers) या मुंह के छाले या नासूर (Canker sores)

मुलेठी छाले युक्त व्रण में एक दिन के भीतर 50 से 75% तक राहत प्रदान कर सकती है और तीन दिनों के भीतर यह इसका पूरी तरह से उपचार कर सकती है।

नासूर दर्द और मृदुता के लक्षणों वाला एक सामान्य प्रकार का मुंह का व्रण होता है। ये लालिमा से घिरे हुए सफ़ेद या पीले रंग के होते हैं। यष्टिमधु का पानी या चाय, दर्द और मृदुता को कम कर देता है। इसके पानी से गरारे करना नासूर के घावों के आकार को कम करने में प्रभावी है।

सव्रण बृहदांत्रशोथ

मुलेठी में ग्लेब्रिडीन यौगिक होता है, जो बृहदांत्र संबंधी सूजन को कम कर देता है। यह श्लेष्म के सूजन वाले क्षेत्र में उपचार की प्रक्रिया को तेज कर सकता है और आंतों के श्लेष्म के अल्सर को रोक सकता है।

आयुर्वेद में, सव्रण बृहदांत्रशोथ के उपचार में इसका उपयोग आमलकी, वंशलोचन (Vanshlochan) और गिलोय सत्व (Giloy Satva) के साथ किया जाता है।

मद्य रहित वसा यकृत रोग

मुलेठी मद्य रहित वसा यकृत रोग में लाभ देती है। यह बढ़े हुए यकृत किण्वक को कम कर देती है।

आयुर्वेद के अनुसार, यष्टिमधु यकृत के रोगों के लिए एक शक्तिशाली उपाय नहीं है, लेकिन जब इसे अन्य यकृत संबंधी रक्षात्मक जड़ी बूटियों जैसे पुनर्नवा, भृंगराज (Bhringraj), गिलोय, पाठा आदि के साथ लिए जाए तो यह इस रोग में लाभप्रद हो सकती है।

खांसी में मुलेठी का उपयोग

मुलेठी गले में खराश, जलन, खाँसी और ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) के उपचार में उपयोगी है।

यष्टिमधु में कफोत्सारक गुण होते हैं। यह फेफड़ों में जमे मोटे पीले रंग के बलगम का भी खांसी के साथ निकलना आसान बनाता है। जीवाणुरोधी गुणों के कारण, यह ऊपरी श्वसन तंत्र का संक्रमण भी कम कर देता है। यह गले की जलन को कम करता है और पुरानी खांसी में मदद करता है।

आयुर्वेद में, इसका प्रयोग निम्न स्थितियों में किया जाता है:

मुलेठी चूर्ण 2 ग्राम
सितोपलादि चूर्ण 2 ग्राम
शहद 1 चम्मच

ब्रोंकाइटिस (कफज कास) और दमा

मुलेठी श्वसन नलियों की सूजन को कम करती है और श्वसन तंत्र को आराम पहुंचती है, इस प्रकार यह ब्रोन्काइटिस में मदद करती है। दाह नाशक गुणों के कारण, यह ब्रोंकाइटिस, दमा जैसे कई सूजन वाले रोगों में प्रभावी है। अध्ययन के अनुसार, यह एलर्जी अस्थमा (प्रत्यूर्जतात्मक दमा) में भी लाभदायक हो सकती है।

दमा में, इसका उपयोग पुष्करमूल चूर्ण और शहद के साथ किया जा सकता है।

उच्च कोलेस्ट्रॉल (रक्तवसा)

मुलेठी में रक्तोद रक्तवसा (कोलेस्ट्रॉल) और यकृत संबंधी रक्तवसा (कोलेस्ट्रॉल) के स्तर को कम करने की शक्ति है। यष्टिमधु की संभावित क्रिया को कोलेस्ट्रॉल से पित्त में परिवर्तित करने से जोड़ा जा सकता है।

धमनीकलाकाठिन्य (Atherosclerosis)

मुलेठी की जड़ या मुलेठी में धमनीकलाकाठिन्य नाशक गुण होते हैं। यह प्रभाव रक्त वाहिकाओं में रक्तोद रक्तवसा (कोलेस्ट्रॉल) की कमी और पट्टिका गठन के कारण हो सकता है। इसके आलावा इस में पाया जाने वाला एक अन्य प्रतिउपचायक गुण भी हृदय संबंधी रोगों को रोकने में प्रभावशाली हो सकता है।

हॉर्मोन (Hormones)

मुलेठी एड्रेनल ग्लैंड (अधिवृक्क ग्रंथि) पर उसके प्रभाव के लिए जानी जाती है। यह अधिवृक्क ग्रंथि के कार्यों को बेहतर बनाती है। यह स्टेरॉयड ड्रग्स लेने वाले लोगों के लिए सहायक हो सकती है, क्योंकि स्टेरॉयड अधिवृक्क ग्रंथि के महत्वपूर्ण कार्यों को दबाते हैं जिसके कारण अधिवृक्क की अपर्याप्तता हो जाती है। यह एड्रेनल ग्लैंड (अधिवृक्क ग्रंथि) के प्राकृतिक कार्यों को पुनः प्राप्त करने और अधिवृक्क हार्मोन को उत्तेजित करने में सहायता करती है।

मलेरिया

चीन में पायी जाने वाली एक विशिष्ट मुलेठी के मूल में लीकोचालकोन (Licochalcone) नामक एक यौगिक उपस्थित होता है।यह फाल्सीपेरम (falciparum) के विरुद्ध कार्य करता है एवं इसका प्रभाव क्लोरोक्विन (chloroquine) के समान होता है। कुछ शोध के अनुसार यह निष्कर्ष निकला है कि मुलेठी की एक नई प्रजाति में शक्तिशाली मलेरिया नाशक गुण  उपस्थित हैं।

यक्ष्मा

चीन में पायी जाने वाली यष्टिमधु की जड़ों में लीकोचालकोन पाया जाता है जिसका माइकोबैक्टीरियल प्रजाति के विरुद्ध निरोधात्मक प्रभाव होता है। तथापि, यक्ष्मा में मुलेठी  के परिणामों की जांच के लिए अधिक अध्ययन की आवश्यकता है, हालांकि यह जीवाणु संबंधी फेफड़ों के संक्रमणों में मदद कर सकता है।

गले में खराश

यष्टिमधु के पानी या काढ़े के साथ गरारे करने से गले में सूजन, खराश और दर्द कम होता है। अध्ययनों से पता चला है कि यष्टिमधु के साथ गरारे करने से बढ़ी हुई खांसी और उसके बाद गले की खराश के मामलों में 50% की कमी आ जाती है।

आयुर्वेद में, गले की खराश के उपचार के लिए मुलेठी की जड़ के चूर्ण का उपयोग शहद और सितोपलादि चूर्ण के साथ किया जाता है।

पोटैशियम का उच्च स्तर

कुछ शोध अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकला है कि मुलेठी में कुछ निश्चित यौगिक पाए जाते हैं, जो रक्त में पोटेशियम के स्तर को कम करते हैं। इसलिए, यह गुर्दे और मधुमेह के रोगियों में उच्च सीरम पोटेशियम के मामलों में प्रभावी हो सकती है।

मुख्य चेतावनी यह है कि इसका उपयोग कम पोटेशियम के स्तर और उच्च सोडियम स्तर वाले मामलों में नहीं करना चाहिए। अन्यथा, इस से  पोटेशियम स्तर अत्याधिक कम हो कर गंभीर पेशीविकृति (severe myopathy) हो सकती है।

खुजली

मुलेठी के पेस्ट, तेल या जेल का उपयोग करने से खुजली के साथ साथ सूजन और खाज में भी लाभ मिलता है। खुजली के उपचार में प्रयुक्त कुछ हर्बल क्रीम और जेल में मुलेठी सत्त्व होता है। यह खुजली, लालिमा और सूजन को कम कर देता है।

बालों का झड़ना और समयपूर्व सफ़ेद होना

आयुर्वेद में, मुलेठी का उपयोग बाल गिरने से रोकने के लिए किया जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार, बड़े हुए पित्त और वात विकार के कारण बाल झड़ते हैं और समयपूर्व सफ़ेद हो जाते हैं।

मुलेठी का इन दोनों दोषों पर प्रभाव पड़ता है और शरीर में इन बढ़े हुए दोषों को शांत कर वातज और पित्तज विकारों लाभ पहुचाता है।

इस तरह से यह बालों की जड़ें को मजबूती देता है और बाल झड़ते से रोकता है।

कैसे सेवन करें: इसका सेवन आप आमलकी रसायन के साथ कर सकते है। दोनों ही सामान भाग लेकर रोजाना १/४ चम्च सुबह साम सादे पानी के साथ लें और कुछ ही दिनों में लाभ नजर जा जाएगा।

छाइयाँ और काले धब्बे

आम तौर पर, छाइयाँ और काले धब्बे पित्त प्रकार के लोगों या पित्त विकार वाले लोगों में पाये जाते हैं। छाइयाँ और काले धब्बे कम करने के लिए मुलेठी के साथ आमलकी ने अच्छे परिणाम दिखाए हैं। हमारे अनुभव के अनुसार, छाइयाँ और काले धब्बे कम करने के लिए 3 से 6 महीने का समय लग सकता है। हालांकि, यह हर्बल संयोजन काले धब्बों की तुलना में छाईयों के लिए अधिक प्रभावी है।

मांसपेशियों में ऐंठन

मुलेठी में आक्षेपनाशक और स्नायु शिथिलता के गुण होते हैं। यह फाइब्रोम्यलगिया (जोड़ों की मांस पेशियों में तेज दर्द) के रोगियों की मांसपेशियों में ऐंठन और मृदुता को कम करता है।

इसका प्रभाव मुख्य रूप से महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान होने वाली पेट की ऐंठन में देखा गया है, लेकिन यह इतना शक्तिशाली नहीं होता है कि अकेले काम कर सके, इसलिए रोगी को अन्य दवाओं की आवश्यकता भी हो सकती है।

यह हेमोडायलिसिस (hemodialysis) के रोगियों में मांसपेशियों में ऐंठन को रोकने में मदद कर सकता है।

ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis)

आयुर्वेदिक चिकित्सा में, ओस्टियोआर्थराइटिस (अस्थिसंधि शोथ) के उपचार के लिए मुलेठी का उपयोग अश्वगंधा के साथ किया जाता है। कई आयुर्वेदिक पीड़ाहर औषधियों में यष्टिमधु और अश्वगंधा मुख्य घटक होते हैं।

स्थायी थकावट के लक्षण (Chronic fatigue syndrome- CFS)

मुलेठी स्थायी थकावट के लक्षण वाले रोगियों की सहायता कर सकती है। यह क्रिया ताकत देने की और प्रतिउपचायक गतिविधियों के कारण हो सकती है।

रजोनिवृत्ति में गर्मी लगना (Menopausal Hot Flashes)

अध्ययनों से पता चलता है कि मुलेठी का उपयोग करने से रजोनिवृत्ति के दौरान लगने वाली तेज गर्मी की तीव्रता और आवृत्ति कम हो जाती है। अधिकतर महिलाओं में यह स्वीकार्य और सहनीय भी है।

आयुर्वेद में, सारस्वतारिष्ट (SARASWATARISHTA) और मुक्ता पिष्टी (MUKTA PISHTI) के साथ यष्टिमधु का उपयोग रजोनिवृत्ति के लक्षणों को कम करने के लिए किया जाता है।

अल्पशुक्राणुता

आयुर्वेद के अनुसार, शरीर पर मुलेठी का शीतल प्रभाव पड़ता है। इसमें ताकत देने वाले और कायाकल्प के प्रभावी गुण भी होते हैं। इसका उपयोग अन्य जड़ी-बूटियों के साथ शुक्राणुजनन को बढ़ाने और शुक्राणुओं की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाता है।

शुक्र-संबंधी कमजोरी

हालांकि, मुलेठी को कमजोर कामेच्छा वाले लोगों के लिए अनुशंसित नहीं किया जाता है, लेकिन यह शीघ्र पतन और शुक्र-संबंधी कमजोरी वाले लोगों की मदद करती है। आम तौर पर, पुरुषों में अति-उत्तेजना या अतिसंवेदनशीलता शीघ्र पतन का कारण होती है। मुलेठी अधिक उत्तेजना को कम करती है और इस प्रकार पुरुषों की शीघ्र पतन की समस्या का उपचार करने में मदद करती है। कभी-कभी, शीघ्र पतन में मस्तिष्क की भूमिका भी होती है और इसमें यष्टिमधु प्रभावशाली होता है।

पौरुष ग्रंथि अतिवृद्धि या कैंसर

मुलेठी का उपयोग पौरुष ग्रंथि अतिवृद्धि या पौरुष ग्रंथि कैंसर में किया जाता है, लेकिन अभी तक इस विषय पर इसके संबंधित अध्ययन उपलब्ध नहीं हैं।

उदरीय वसा

मुलेठी में कुछ फ्लेवोनोइड होते हैं, जो पेट में वसा संचय को कम करते हैं। शोध से पता चलता है कि इसमें हाइपोग्लाइसेमिक (hypoglycemic effects) प्रभाव भी होते हैं, इसलिए मधुमेह में भी मुलेठी से लाभ हो सकता है।

यह उच्च सीरम कोलेस्ट्रॉल स्तर वाले मोटे लोगों की भी मदद कर सकती है। हम कोलेस्ट्रोल पर यष्टिमधु के प्रभाव की चर्चा पहले ही ऊपर ह्रदय स्वास्थ्य भाग में कर चुके हैं।

मुलेठी मात्रा और सेवन विधि

औषधीय मात्रा (Dosage)

बच्चे(5 वर्ष की आयु से ऊपर) 250 मिलीग्राम से 1.5 ग्राम
वयस्क 1 से 3 ग्राम
अधिकतम संभावित खुराक प्रति दिन 6 ग्राम (विभाजित मात्रा में)

सेवन विधि

दवा लेने का उचित समय (कब लें?) जठरशोथ, व्रण आदि जैसे पेट के रोगों में भोजन से पहले
दिन में कितनी बार लें? 2 बार – सुबह और शाम
अनुपान (किस के साथ लें?) गुनगुने दूध या चिकित्सक द्वारा सुझाए गए अनुपान के अनुसार
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) चिकित्सक की सलाह लें

सुरक्षा प्रोफाइल

उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों में मुलेठी के दुष्प्रभाव अधिक पाए जाते हैं। आम तौर पर, यदि आपको पहले से उच्च रक्तचाप की शिकायत नहीं है तो यह आपका रक्तचाप नहीं बढ़ाता है। मुख्यतः मुलेठी की अधिक मात्रा में खुराक लेने पर ही दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं। इसलिए, जिन व्यक्तियों को उच्च रक्तचाप की शिकायत नहीं है, उनके लिए यह संभवतः सुरक्षित हो सकती है। खुराक प्रति दिन 10 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए। आपको लगातार 4 सप्ताह अधिक मुलेठी का उपयोग नहीं करना चाहिए।

मुलेठी के नुकसान

मुलेठी का नियमित उपयोग करने की सलाह भी नहीं दी जाती है क्योंकि नियमित सेवन के कारण शरीर में निम्न पोटेशियम और उच्च सोडियम हो जाता है जिससे तरल पदार्थ का प्रतिधारण होता है।

कुछ दुष्प्रभाव यहां सूचीबद्ध हैं:

  1. उच्च रक्तचाप
  2. खून में कम पोटेशियम
  3. उच्च सोडियम स्तर
  4. सूजन *
  5. द्रव प्रतिधारण * (Fluid retention)

* ये प्रभाव दुर्लभ होते हैं और तभी प्रकट होते हैं जब मुलेठी को दूध या अप्राकृतिक रूप जैसे कि सत्व के रूप में लिया जाता है। दुष्प्रभाव तब होते हैं जब इसका सेवन नियमित रूप से कई महीनों तक किया जाता है।

मुलेठी आपके रक्तचाप को बढ़ा सकती है लेकिन यह प्रभाव प्रति दिन 10 ग्राम से अधिक खुराक के साथ ही देखा जाता है। सभी अध्ययन यह सुझाव देते हैं कि यह दुष्प्रभाव 50 ग्राम से 200 ग्राम प्रति दिन की खुराक, जो कि चिकित्सीय खुराक नहीं है, के साथ ही देखे जाते हैं। चिकित्सीय खुराक प्रतिदिन 3 ग्राम – 10 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए।

मुलेठी में उपस्थित ग्लिसरीटिनिक एसिड (Glycyrrhetinic acid) के कारण रक्त में पोटैशियम का स्तर कम हो जाता है और इस प्रकार यह उच्च रक्तचाप पैदा कर सकता है। जर्नल ऑफ हाइपरटेन्शन (Journal of hypertension) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रभाव तीन सप्ताह के अंदर शरीर से मुलेठी की निकासी के बाद चले जाते हैं और रक्त चाप सामान्य हो जाता है।

मुलेठी का नियमित सेवन हाइपरमिनरलोंकर्टिकॉइडिस्म (hypermineralocorticoidism) का कारण बनता है, जिसके कारण उच्च रक्तचाप और उच्च रक्तचाप से ग्रस्त मस्तिष्क विकृति हो सकती है।

गर्भावस्था

आयुर्वेदिक विज्ञान गर्भावस्था में अंतर्गर्भाशयी वृद्धि अवरोध (intrauterine growth restriction) के मामले में मुलेठी का उपयोग करने की सलाह देता है। भारत में ऐसे मामलों में इसका चिकित्सीय रूप से उपयोग 2000 वर्षों से किया जा रहा है।

हालांकि, आधुनिक विज्ञान गर्भावस्था के समय इसके प्रयोग को प्रतिबंधित करता है। गर्भावस्था में मुलेठी उच्च खुराक में असुरक्षित है।

गर्भावस्था में मुलेठी का अधिक मात्रा में सेवन करने से प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। मुलेठी सत्व की अधिक मात्रा की खुराक के बारे में अध्ययन ने यह निष्कर्ष निकाला है कि इसके परिणामस्वरूप समय से पहले प्रसव हो सकता है।

एक अन्य विरोधाभासी अध्ययन ने यह निष्कर्ष निकाला है कि मुलेठी सत्व की अधिक मात्रा की खुराक का माँ के रक्तचाप और शिशुओं के जन्म के समय वजन पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं होता है, लेकिन मुलेठी सत्व गर्भ धारण के समय को प्रभावित करता है जिसके परिणामस्वरूप समय पूर्व प्रसव हो सकता है।

माँ द्वारा यष्टिमधु का उपयोग बाद के जीवन में बच्चों के संज्ञानात्मक प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है। ऐसा ग्लाइसर्रिहिज़ा, यष्टिमधु के सक्रिय घटक और ग्लूकोकार्टोइकोड्स के ओवर एक्सपोज़र के कारण हो सकता है।

निष्कर्ष के तौर पर, हम यह सुझाव देते हैं कि यदि अन्य विकल्प उपलब्ध हों और जब तक लाभ संभावित जोखिम कारकों से अधिक ना हो, गर्भावस्था के समय ग्लाइसिराहिज़िन का उपयोग नहीं करना चाहिए

स्तनपान

स्तनपान कराते समय प्रतिदिन 6 ग्राम से अधिक मात्रा में मुलेठी का उपयोग करने से बचें।  यष्टिमधु उत्पादों का नियमित सेवन वर्जित है।

विपरीत संकेत (Contraindications)

  1. उच्च रक्तचाप या उच्च रक्तचाप वाली औषधियां लेने वाले रोगी
  2. उच्च रक्तचाप मस्तिष्क विकृति
  3. कामेच्छा की हानि
  4. स्तंभन दोष
  5. गुर्दों के रोग (जब तक कि उच्च पोटेशियम ना हो)
  6. हाइपरटोनिया (Hypertonia)
  7. हाइपोकलिमिया (Hypokalemia) – कम पोटेशियम
  8. द्रव प्रतिधारण
  9. रक्तसंलयी हृद्पात

औषधियों का पारस्परिक प्रभाव (Drug Interactions)

मुलेठी उच्च रक्तचाप वाली औषधियों के साथ क्रिया करके उनका संकेंद्रण कम कर देती है।

मधुमेह में विशेष सावधानी

कुछ शोध अध्ययनों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि मुलेठी रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित कर सकती है। कई अध्ययनों ने सुझाव दिया है कि यह रक्त शर्करा के स्तर को कम करती है, अतः मधुमेह नाशक चिकित्सीय खुराक को समायोजित करने के लिए रक्त शर्करा के स्तर की नियमित जांच आवश्यक हो जाती है।

सूचना स्रोत (Original Article)

  1. Benefits and Uses of Mulethi (Yashtimadhu) – AYURTIMES.COM

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