भृंगराज के लाभ, प्रयोग, मात्रा एवं दुष्प्रभाव

भृंगराज (Bhringraj) एक सुप्रसिद्ध औषधि है जो यकृत विकारों और केश वर्धन में उसके उपयोग और लाभ के लिए जानी जाती है। यह त्वचा रोगों, खांसी, अस्थमा, नेत्र विकार और सिर के किसी भी हिस्से से संबंधित विकारों के लिए भी प्रभावी औषधि है। यह बालों की बढ़वार में सुधार करती है, बालों को झड़ने से रोकती है और समय से पहले बालों के पकने का उपचार करती है। यह त्वचा के रंग और चमक को बेहतर बनाती है और त्वचा के कई रोगों की रोकथाम करती है। यह पुराने त्वचा रोगों जैसे तीव्र खुजली, पुराने घाव, त्वचा के नासूर, एक्जिमा आदि में बहुत लाभदायक है। यह औषधि यकृत में पित्त का उत्पादन बढ़ाती है, यकृत की क्रिया में सुधार करती है, कब्ज को कम करती है, पाचन में सुधार करती है और चयापचय (Metabolism) को बढ़ाती है।
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सामान्य जानकारी
भृंगराज को अंग्रेजी भाषा में फाल्स डेज़ी भी कहते हैं। भृंगराज का स्वीकृत वानस्पतिक नाम एक्लिप्टा प्रोस्ट्राटा (Eclipta Prostrata) है। इसको एक्लिप्टा अल्बा (Eclipta Alba) के नाम से भी जाना जाता है, जो एक्लिप्टा प्रोस्ट्राटा (Eclipta Prostrata) का वानस्पतिक समानार्थक नाम है।
वानस्पतिक नाम | एक्लिप्टा प्रोस्ट्राटा (Eclipta Prostrata) |
वानस्पतिक समानार्थक नाम | एक्लिप्टा अल्बा, वेरबेसिना प्रोस्ट्राटा, एक्लिप्टा इरेक्टा, एक्लिप्टा पंकटाटा, वेरबेसिना अल्बा |
सामान्य नाम (अंग्रेजी) | फाल्स डेज़ी |
अन्य नाम | एक्लिप्टा, येरबा दी टागो (येरबा दी टाजो) |
संस्कृत नाम | केहराज, भृंगराज (Bhringraj), भांगरा |
तमिल नाम | करिसालंकन्नी |
वनस्पति परिवार | एस्टेरासै (सनफ्लॉवर, टोरनेसोल्स) |
वंश | एक्लिप्टा एल |
भृंगराज के औषधीय भाग
भृंगराज का पूरा पौधा (पंचांग) औषधि के निर्माण के लिए उपयोग में लिया जाता है।
भृंगराज रस (स्वरस) का उपयोग कई आयुर्वेदिक योगों में किया जाता है जिनमें भृंगराज तेल, नीली भृंगादि तेल और महा भृंगराज तेल शामिल हैं।

रासायनिक संरचना
ऐसा दावा किया जाता है कि भृंगराज में निकोटिन और एक्लिप्टिन होता है। हालांकि, भृंगराज के पत्तों में निकोटिन का पता लगाने के लिए किये गए एक परीक्षण में निकोटिन नहीं मिला है। हालांकि, उसी अध्ययन में वेडेलिक एसिड और 7-O-ग्लूकोसाइड पाए गए।
भृंगराज में निम्न रासायनिक घटक भी पाए जाते हैं:
- वेडेलोलैक्टोन, लुटेओलिन, एपिजेनिन
- ट्रीटरपेनोइड्स – एक्लालबाटिन, अल्फा-अमीरिन, ओलीनोलिक एसिड, उर्सोलिक एसिड
- फ्लवोनोइड्स – एपिजेनिन और लुटेओलीन
- वेडेलोलैक्टोन
- एचिनोसिस्टिक एसिड ग्लाइकोसाइड्स
- β-सीटोस्टेरॉल
- डोकोस्टेरॉल
भृंगराज के आयुर्वेदिक गुण
रस (स्वाद) | कटु और तिक्त |
गुण | रूक्ष और लघु |
वीर्य | ऊष्ण |
विपाक | कटु |
मुख्य क्रियाएं | केश्य (बालों की वृद्धि को बढ़ाता है), वर्ण्य (त्वचा की रंगत सुधारता है), दृष्टि वर्धक (दृष्टि में सुधार करता है), यकृत संबंधी सुधार |
दोष कर्म | मुख्य रूप से कफ दोष (Kapha Dosha) को कम करता है और वात दोष (Vata Dosha) को शांत करता है |
अंगों पर प्रभाव | केश, त्वचा, दांत, नेत्र, यकृत |
औषधीय गुण
भृंगराज में निम्नलिखित औषधीय गुण हैं:
- केश्य (केश वर्धन – बालों को बढ़ाने वाला)
- वर्ण्य (कांति वर्धक – त्वचा की रंगत सुधारने वाला)
- दृष्टि वर्धक (दृष्टि में सुधार करने वाला)
- यकृत संबंधी सुधार
- क्षुधावर्धक – भूख बढ़ाने वाला
- पाचन उत्तेजक
- बादी – विरोधी
- कृमिनाशक
- वातहर
- पित्त के निर्वहन को बढ़ावा देता है
- आम पाचक – शरीर के टॉक्सिन को नष्ट करने वाली
- नयूरोप्रोटेक्टिव
- सौम्य पीड़ा-नाशक
- मोटापा और कोलेस्ट्रॉल कम करने वाला
- सौम्य उच्च रक्त चाप कम करने वाला
- एंटी-इस्केमिक
- हेमेटोजेनिक (लाल रक्त कोशिकाओं के गठन में मदद करने वाला)
- सौम्य मूत्रवर्धक
- स्वेदजनक – पसीना लाने वाला
- सौम्य ज्वर नाशक (पसीने से उत्पन्न होने वाले बुखार को कम करने वाला)
चिकित्सीय संकेत
भृंगराज निम्नलिखित स्वास्थ्य की स्थितियों का पालन करने में सहायक है:
- बालों का झड़ना
- बालों का कम होना
- बालों का समय से पहले सफ़ेद होना
- सिर की खोपड़ी में खुजली होना
- तीव्र खुजली
- गंभीर घाव
- ना भरने वाले त्वचा के घाव
- त्वचा पर सूजन (एक्जिमा)
- पित्ती
- त्वचा पर कफ और वात के लक्षणों के कारण फफोले और फोड़े-फुंसी
- स्राव और निर्वहन के साथ अल्सर और फोड़े
- भूख ना लगना
- यकृत (लीवर बढ़ना)
- वसा यकृत रोग
- तिल्ली बढ़ना
- पीलिया
- बवासीर
- पेट दर्द
- आंतों में कीड़े (भृंगराज रस कैस्टर ऑयल के साथ दें)
- सौम्य उच्च रक्तचाप रोधी
- मोटापा और कोलेस्ट्रॉल कम करने वाला
- खांसी
- अस्थमा

भृंगराज के लाभ और औषधीय उपयोग
भृंगराज के महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ और औषधीय उपयोग निम्नलिखित हैं:
यकृत स्वास्थ्य
भृंगराज का यकृत पर असाधारण प्रभाव होता है। यह हेपेटोप्रोटेक्टिव (यकृत के रक्षक) के रूप में कार्य करता है और यकृत कोशिकाओं के पुनर्जनन को उत्तेजित करता है। इस जड़ी बूटी की सभी औषधीय क्रियाऐं यकृत पर इसके प्रभाव के कारण हैं। यह यकृत में पित्त का उत्पादन बढ़ाता है, पाचन को बढ़ाता है, विषाक्त पदार्थों को तोड़कर बाहर निकालता है और सम्पूर्ण यकृत के स्वास्थ्य में सुधार करता है। यकृत विकारों में, यह सूजन को कम करता है, यकृतविषकारी विरोधी प्रभावों को खींचता है और यकृत के एंजाइमों में सुधार करता है। फ्लेवोनॉइड सामग्री (वेडेलोलैक्टोन) भृंगराज के हेपेटोप्रोटेक्टिव एक्शन (यकृत की सुरक्षा की क्रिया) से संबंधित होती है।
यह अल्कोहल टॉक्सिसिटी (मद्यजन्य विषाक्तता) के विरुद्ध यकृत की सुरक्षा करता है और इसके हेपेटोप्रोटेक्टिव प्रभाव मिल्क थिस्टल (Milk Thistle) से अधिक हैं। यह बढ़े हुए लिवर एंजाइमों को कम कर देता है। यह एलैनाइन ट्रांसमैनेज (एएलटी), एस्पेरेटेट एमिनोट्रांस्फेरेज़ (एएसटी), और एल्कालाइन फॉस्फेटस (एएलपी) का स्तर कम कर देता है।
लिवर फाइब्रोसिस (यकृत तंतुरुजा)
भृंगराज चूर्ण में एंटी फाइब्रोटिक (तंतुमय विरोधी) प्रभाव भी है, जो हिपेटिक फाइब्रोसिस (यकृती तंतुमयता) को रोकने और उसका उपचार करने में मदद करता है। यह हिपेटिक स्टेललेट सेल्स (यकृत तारामय कोशिकाओं) के प्रसार को कम करता है। यह प्रभाव इसके ट्राइटरपेनॉयड (एचिनोसिस्टिक एसिड) के कारण हो सकता है। इसलिए, यह जड़ी बूटी लिवर फाइब्रोसिस (यकृत तंतुरुजा) को घटाने और उसके विकास को रोकने में भी मदद कर सकती है।
हेपेटाइटिस सी
भृंगराज के सत्त में एचसीवी – विरोधी क्रिया होती है। इसके सक्रिय घटक वेडेलोलैक्टोन और लूटेओलीन एचसीवी प्रतिकृति की आरडीआरपी गतिविधि को रोकने के लिए क्रियाशील प्रभाव डालते हैं।
भृंगराज को हेपेटाइटिस सी के उपचार में सम्मिलित किया जा सकता है। यह यकृत के कार्यों में सुधार भी करेगा और रोग के प्रसार को कम कर देगा। आयुर्वेद में, अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए इसका उपयोग नागरमोथा (नट ग्रास) के संयोजन में किया जा सकता है। इसी प्रकार का संयोजन हेपेटाइटिस बी के उपचार में भी प्रभावी है।
पीलिया
यकृत पर सूजन उसके बिलीरूबिन (रक्तिम-पित्तवर्णकता) को संयुग्मित और स्रावित करने की क्षमता को कम कर सकती है, जिससे रक्त में बिलीरुबिन के अधिक होने के कारण पीलिया हो सकता है। इस स्थिति को हाइपर बिलीरुबिनेमिया भी कहा जा सकता है।
आयुर्वेद में, पूरे पौधे (पंचांग) के भृंगराज स्वरस को अन्य अवयवों के साथ पीलिया के उपचार में उपयोग किया जाता है। ये इस प्रकार हैं:
भृंगराक स्वरस | 10 मिलीलीटर |
काली मिर्च | 1 ग्राम |
मिश्री (शक्कर) | 3 ग्राम |
शरीर में बिलीरुबिन स्तर को कम करने और पीलिया का उपचार करने के लिए इस मिश्रण को दिन में 3 बार 3 से 5 दिनों के लिए दिया जाता है। उपचार के दौरान दही और चावल आधारित भोजन की सिफारिश की जाती है।
बाल झड़ना
स्वस्थ यकृत शरीर में हार्मोन और वसा का प्रसंस्करण करके, विषों को निकालकर और शरीर में हार्मोन स्तर में सुधार करके बालों के झड़ने को कम करने में मदद कर सकता है। यही सब बालों के झड़ने का आम कारण होती हैं। इसलिए, भृंगराज बालों का झड़ना रोकने और उपचार के लिए एक प्रभावी औषधि भी है। हालांकि, इसका बाहरी प्रयोग भी बालों की जड़ों को मजबूत करके बाल गिरने को रोकने में मदद करता है।
इसमें बालों की वृद्धि को बढ़ावा देने वाले प्रभाव हैं। एक अध्ययन में, यह पाया गया है कि यह रोम कूपों के संक्रमण को टेलोजेन चरण से अनाजेन चरण तक बढ़ावा देकर बालों की वृद्धि को प्रेरित करता है।
आयुर्वेद में, भृंगराज स्वरस को बाहरी अनुप्रयोग के रूप में और आंतरिक उपयोग के लिए अनुशंसित किया जाता है। इसका चूर्ण का उपयोग 1 से 3 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार किया जाता है। भृंगराज स्वरस का उपयोग विभिन्न तेलों के निर्माण में भी किया जाता है, जो की बालों के झड़ने, सिर की खुजली और समय से पहले बालों के सफ़ेद होने के लिए प्रभावी हैं। ये योग हैं:
- भृंगराज तेल (Bhringraja Oil)
- गुंजादि तेल (गुँजा तेल) – Gunjadi Oil (Gunja Tail)
- महा भृंगराज तेल (Mahabhringraja Oil)
- नीली भृंगादि तेल (Neelibhringadi Oil)
असमय बालों का पकना
त्रिफला चूर्ण (Triphala Churna) को भृंगराज स्वरस में भिगोया जाता है और सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। फिर सूखने के बाद कूट कर महीन चूर्ण बना लिया जाता है। इसे भृंगराज सिद्ध त्रिफला चूर्ण कहते हैं। असमय सफ़ेद होने वाले बालों के उपचार के लिए इस चूर्ण को प्रातः काल खाली पेट लेने की सलाह दी जाती है। नियमित उपयोग से एक माह के भीतर ही अच्छे परिणाम मिलते हैं।
जीर्ण ज्वर
जीर्ण ज्वर के उपचार में, जिसमें यकृत में विकार आ जाए, या यकृत और प्लीहा बढ़ जाए, भृंगराज का उपयोग अन्य आयुर्वेदिक औषधियों के साथ किया जाता है। इसका उपयोग तब भी किया जाता है जब रोगी कमजोर पाचन, भूख ना लगने और शरीर में बढ़े हुए कफ दोष (Kapha Dosha) जैसे विकारों से ग्रस्त हो। ऐसी स्थिति में, दिन में दो बार 3 से 5 मिलीलीटर भृंगराज रस को दूध के साथ दिया जाता है और यह उपचार नियमित 2 से 3 सप्ताह के लिए अनुशंसित किया जाता है।
बलगम (कफ) बनना
भृंगराज रस और शहद का उपयोग कफ निस्सारक क्रिया के लिए किया जाता है। यह कफ के निस्सारण का बढ़ाता है और फेफड़ों को साफ करता है। यह फेफड़ों में बलगम के संचय को रोकता है और कफ बनने से राहत प्रदान करता है। सर्वोत्तम परिणामों के लिए, इसका उपयोग सितोपलादि चूर्ण (Sitopaladi Churna) के साथ किया जा सकता है।
दमा
अगर रोगी को बलगम बनने के साथ साथ दमे की भी शिकायत हो, तो इसे ऊपर बताये गए शीर्षक “बलगम (कफ) बनना” के अनुसार दिया जा सकता है।
बच्चों को, दिन में 3 – 4 बार भृंगराज रस समान मात्रा में शहद में मिलाकर दें या जब तक बच्चे को सांस लेने की कठिनाई से राहत ना मिल जाए। यह खांसी, सांस में तेज घरघराहट और छाती की जकड़न को दूर करने में मदद करता है।

श्लेष्म निर्वहन के साथ दस्त
आयुर्वेद के अनुसार, मल के साथ बलगम के निर्वहन होने का अर्थ है कमजोर पाचन क्षमता और पाचन तंत्र में आम (विषाक्त पदार्थों) का निर्माण। यह रोगों का सामान्य लक्षण है जैसे परेशानी देने वाला इर्रिटेबल आंत्र सिंड्रोम (आईबीएस), जीवाणु संक्रमण, सूजन वाले आंत्र रोग (आईबीडी)।
जब एक रोगी को दस्त, बलगम के निर्वहन के साथ कमजोर पाचन, आईबीएस, या जीवाणु संक्रमण होता है तो भृंगराज को निर्दिष्ट किया जाता है। इन स्थितियों में, यह पाचन को सुधारने में मदद करता है, आम (विषाक्त पदार्थों) को कम करता है और अपने जीवाणुरोधी प्रभावों के कारण, यह संक्रमण का भी उपचार करता है।
नोट: आईबीडी, या व्रणयुक्त बृहदांत्रशोथ, या क्रोहन रोग के मामलों में, भृंगराज उपयुक्त औषधि नहीं हो सकती है। विशेष रूप से, इन मामलों में जब अधिक रक्तस्राव हो तो इस औषधि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
सीने में जलन और हाइपर एसिडिटी (अति अम्लता)
भृंगराज सम पित्त की तरह भी क्रिया करता है। यह पित्त दोष (Pitta Dosha) को दूर करता है और सम पित्त के लक्षण जैसे सीने में जलन, मतली, मुँह में खट्टे स्वाद के साथ उल्टी या खट्टी डकार से भी राहत प्रदान करता है। इस स्थिति को आयुर्वेद में अम्ल पित्त कहा जाता है। इसके तीन प्रकार हैं:
- वात प्रधान अम्ल पित्त
- कफ प्रधान अम्ल पित्त
- वात-कफ प्रधान अम्ल पित्त
सभी प्रकार के अम्ल पित्त में भृंगराज को दिया जा सकता है। हालांकि, जब रोगी को कफ प्रभावी अम्ल पित्त या निम्नलिखित लक्षण होते हैं तब यह अधिक प्रभावी होता है।
- कड़वी या खट्टी डकारें
- सीने में जलन
- गले, पेट में जलन
- चक्कर आना
- भूख ना लगना
- उलटी
- सिरदर्द
- अत्यधिक लार या थूक निकलना
इन स्थितियों में भृंगराज चूर्ण का उपयोग पुराने गुड़ और हरीतकी चूर्ण के साथ करना चाहिए। जब रोगी को चक्कर, उल्टी और जलन हो तो यह संयोजन बहुत प्रभावी होता है।
सिरदर्द और माइग्रेन
सिरदर्द और माइग्रेन में, भृंगराज रस प्रतिदिन तीन बार 3 से 5 मिलीलीटर की मात्रा में मौखिक रूप से दिया जाता है।
माइग्रेन (अधकपाटी) का उपचार करने के लिए इसे नाक आसवन (नस्य) के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इस प्रयोजन के लिए, भृंगराज रस को समान मात्रा में बकरी के दूध में मिलाकर, उसकी 2 से 3 बूंदों को सूर्योदय से पहले दोनों नथुनों में डाला जाता है। अगर रोगी को सिरदर्द है जो सूर्योदय के साथ बढ़ता है और सूर्यास्त के बाद घटता है तो यह अत्यधिक प्रभावी है। आयुर्वेद में इस स्थिति को सूर्यव्रत कहा जाता है।
सिर में चक्कर आना
सिर में चक्कर आना (वर्टिगो) के उपचार के लिए 5 मिलीलीटर भृंगराज रस को 3 ग्राम शर्करा के साथ दिया जाता है। यह उपचार कर्ण कोटर प्रणाली (वेस्टिबुलर सिस्टम) को मजबूत करके कर्ण कोटर पुनर्वास में मदद करता है। यह निम्नलिखित कारणों से चक्कर आने में प्रभावी है:
- वात प्रभावी अम्ल पित्त
- वेस्टिब्यूलर न्यूरिटिस और लेब्रिनाइटिस (कान के अंदरूनी भाग की सूजन)
- मेनिर रोग
- बेसिलर धमनी माइग्रेन
दृष्टि और नेत्र विकार
भृंगराज चूर्ण को दृष्टि में सुधार और कई नेत्र विकारों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है।
भृंगराज पत्ती का चूर्ण | 3 ग्राम |
गाय का घी | 5 ग्राम |
शहद | 10 ग्राम |
दृष्टि से बेहतर बनाने और नेत्र रोगों का उपचार करने के लिए उपरोक्त सूत्रीकरण को प्रतिदिन दो बार 40 दिन के लिए दिया जाता है।
आवर्ती गर्भपात (अभ्यस्त गर्भपात)
भृंगराज गर्भावस्था के नुकसान को रोकता है। पुनरावर्ती गर्भपात से पीड़ित महिलाऐं सुबह खाली पेट 3 मिलीलीटर की खुराक में भृंगराजा रस गाय के दूध के साथ ले सकती हैं। परंपरागत रूप से, गर्भपात को रोकने और गर्भाशय को मजबूत करने के लिए इस उपाय का उपयोग किया जाता है।
ऐसे मामलों में, इसे गर्भावस्था के पुन: नियोजन से पहले शुरू किया जाना चाहिए और गर्भावस्था के दौरान इसे जारी रखना चाहिए।
सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए, इसे अश्वगंधा (Withania Somnifera) के साथ भी लिया जा सकता है, जिसका उपयोग इसी तरह के प्रयोजन के लिए किया जाता है।
पारा विषाक्तता (मरकरी पोइज़निंग)
भृंगराज रस का उपयोग शरीर में पारे के संचय को कम करने के लिए किया जाता है। यह शरीर के उत्सर्जन को बढ़ावा देता है।
मुंह के छालें
भृंगराज की ताज़ी पत्तियों को चबाने से मुंह के छालों का उपचार करने में मदद मिलती है।
भृंगराज रसायन
भृंगराज चूर्ण
भृंगराज चूर्ण | 1 ग्राम |
गाय का घी | 1 ग्राम |
शहद | 2 ग्राम |
शर्करा | 1 ग्राम |
शारीरिक और मानसिक बल बढ़ाने, बुद्धि और स्मृति में सुधार करने, दुर्बलता को कम करने, जीवन में सुधार लाने और प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए भृंगराज का उपयोग किया जाता है, इसे भृंगराज रसायन किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए, उपरोक्त संयोजन का उपयोग एक वर्ष के लिए किया जाता है। इसे प्रतिदिन खाली पेट लिया जाना चाहिए।
भृंगराज रस
भृंगराज स्वरस का प्रयोग रसायन (कायाकल्प) उद्देश्य के लिए भी किया जाता है। पाचन क्षमता के अनुसार खाली पेट 3 से 10 मिलीलीटर या उससे अधिक लिया जाना चाहिए। इसे एक महीने के लिए जारी रखना चाहिए। आहार में, केवल दूध की अनुमति है। यह विधि जीवन काल को बढ़ाती है और स्वस्थ जीवन देती है।
मात्रा एवं सेवन विधि
भृंगराज का उपयोग 1 चूर्ण के रूप में 2.स्वरस के रूप में और 3 जलीय सत्त किया जाता है।
भृंगराज चूर्ण खुराक
बच्चे | 250 से 1000 मिलीग्राम |
वयस्क | 1 से 3 ग्राम |
अधिकतम संभावित खुराक | 9 ग्राम प्रति दिन (विभाजित मात्रा में) |
भृंगराज चूर्ण कैसे लें
खुराक (मुझे कितनी बार भृंगराज चूर्ण लेना चाहिए?) | दिन में 2 से 3 बार |
सही समय (मुझे कब लेना चाहिए?) | भोजन से पहले |
सह-औषध | गुनगुने पानी, गाय के घी, शक्कर; शहद (श्वसन रोगों में), दूध (जीर्ण ज्वर में), मिश्री-चीनी (यकृत की बीमारी और पीलिया में), पुराना गुड़और हरीतकी (सीने में जलन, अम्ल पित्त में) के साथ। |
भृंगराज स्वरस खुराक
बच्चे | 1 से 3 मिलीलीटर |
वयस्क | 3 से 10 मिलीलीटर |
अधिकतम संभावित खुराक | प्रति दिन 30 मिलीलीटर (विभाजित मात्रा में) |
भृंगराज स्वरस कैसे लें
खुराक (दिन में कितनी बार मुझे भृंगराज स्वरस लेना चाहिए?) | एक दिन में 2 से 3 बार |
सही समय (मुझे कब लेना चाहिए?) | भोजन से पहले |
सह-औषध | शहद (श्वसन रोगों में), दूध (जीर्ण ज्वर में), मिश्री-शक्कर (यकृत रोग और पीलिया में), पुराना गुड़ और हरिताकी (सीने में जलन और अति अम्लता में) |
भृंगराज सत्त खुराक
बच्चे | 125 से 250 मिलीग्राम |
वयस्क | 250 से 500 मिलीग्राम |
अधिकतम संभावित खुराक | प्रति दिन 1500 मिलीग्राम (विभाजित मात्रा में) |
भृंगराज सत्त कैसे लें
खुराक (दिन में कितनी बार मुझे भृंगराज सत्त लेना चाहिए?) | एक दिन में 2 से 3 बार |
सही समय (मुझे कब लेना चाहिए?) | भोजन से पहले |
सह-औषध | गुनगुने पानी के साथ |
आपको भृंगराज कैप्सूल और गोलियां भी मिल सकती हैं। अगर उनमें प्राकृतिक रूप में जड़ी-बूटियां या चूर्ण है तो ऊपर बताये गए “भृंगराज चूर्ण खुराक” शीर्षक के अनुसार खुराक की गणना करनी चाहिए। यदि कैप्सूल और गोलियों में सत्त है तो ऊपर बताये गए “भृंगराज सत्त खुराक” शीर्षक के अनुसार खुराक की गणना करनी चाहिए।

सुरक्षा प्रोफाइल
भृंगराज अपने प्राकृतिक रूप (चूर्ण या स्वरस) में यदि पेशेवर देख-रेख में, लक्षणों ने अनुसार उचित खुराक में लिया जाए तो अधिकांश व्यक्तियों के लिए सुरक्षित माना जाता है। चूर्ण के लिए अधिकतम खुराक 9 ग्राम प्रतिदिन, स्वरस के लिए प्रति दिन 30 मिलीलीटर और सत्त, सत्त कैप्सूल या गोलियों के लिए प्रति दिन 1500 मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए।
भृंगराज के दुष्प्रभाव
आम तौर पर, यदि भृंगराज को अंतर्निहित दोष और स्वास्थ्य स्थितियों के अनुसार समझदारी से उपयोग किया जाए तो इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है।
गर्भावस्था और स्तनपान
गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए भृंगराज की सुरक्षा प्रोफ़ाइल उचित रूप से स्थापित नहीं है। गर्भावस्था और स्तनपान कराते समय भृंगराज का उपयोग करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक या औषधि विशेषज्ञ से परामर्श करें।
भृंगराज के आयुर्वेदिक योग
- भृंगराज चूर्ण
- भृंगराज घृत
- भृंगराज तेल
- भृंगराजादि चूर्ण
- भृंगराजासव (भृंगराजासवम) – Bhringrajasava (Bhringarajasavam)
- गुनादि तेल (गुँजा तेल) – Gunjadi Oil (Gunja Tail)
- महाभृंगराज तेल
- नरसिम्हा रसायनम – Narasimha Rasayanam
- नीली भृंगादि तेल – Neelibhringadi Oil
- षडबिंदु तेल – Shadbindu Tail
- सूतशेखर रस – Sutshekhar Ras