मण्डूर भस्म के लाभ, औषधीय प्रयोग, मात्रा एवं दुष्प्रभाव
मण्डूर भस्म एक आयुर्वेदिक निस्तापित लोह नियमन है। पुराने जंग लगे लोहे को मण्डूर भस्म के निर्माण के लिए उपयोग किया जाता है। रासायनिक रूप से, यह फेरिक ऑक्साइड (रेड आयरन ऑक्साइड) है। लौह-अल्पताजन्य रक्ताल्पता और रक्ताल्पता के कारण होने वाली दुर्बलता के लिए मण्डूर भस्म एक पसंदीदा औषधि है। आयुर्वेद में, इसका उपयोग रजोरोध (मासिक धर्म ना होना), कष्टार्तव, पीलिया (रक्तलायी पीलिया) और यकृत एवम प्लीहा विकारों के लिए भी किया जाता है।
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घटक द्रव्य (संरचना)
निम्नलिखित घटकों से मण्डूर भस्म का निर्माण किया गया है। इसका मुख्य घटक पुराना जंग लगा लौह है।
- पुराना जंग लगा लौह (फेरिक ऑक्साइड या रेड आयरन ऑक्साइड)
- त्रिफला काढ़ा
- गौ मूत्र
- एलो वेरा रस
मण्डूर (पुराना जंग लगा लौह) के महीन चूर्ण का एक भाग और त्रिफला काढ़े का चार भाग लिया जाता है। जंग लगे लौह और त्रिफला काढ़े को मिला कर आग पर गर्म किया जाता है। इसे तब तक गर्म किया जाता है जब तक की जल का अंश वाष्पित होकर उड़ ना जाए और सिर्फ चूर्ण बाकी रह जाए। इसके बाद इस चूर्ण को गौ मूत्र और एलो वेरा रस में मिला कर घोंटा जाता है। फिर इसे सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब यह सूख जाता है, तो इसे उच्च तापमान पर गरम किया जाता है। मण्डूर भस्म प्राप्त करने के लिए इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया जाता है।
रासायनिक संरचना
फेरिक ऑक्साइड या रेड आयरन आक्साइड (Fe2O3) मण्डूर (मंडूर) भस्म में उपस्थित मुख्य रसायन है। हालांकि, इसे जड़ी बूटियों के साथ संसाधित और उच्च तापमान पर निस्तापित किया जाता है, जिससे शरीर में इसके हानिकारक प्रभाव कम हो जाते हैं और शरीर में इसकी जैव उपलब्धता बढ़ जाती है।
औषधीय गुण
मण्डूर भस्म में निम्नलिखित औषधीय गुण हैं:
- रक्तकणरंजक (हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाता है)
- हेमेटोजेनिक (लाल रक्त कोशिकाओं के गठन में मदद करता है)
- कृमिनाशक
- वातहर
- पाचन उत्तेजक
- आर्तवजनक
- वसा दाहक
- अल्पशर्करारक्तता
- बिलीरुबिन को कम करता है
आयुर्वेदिक गुण
रस | कषाय |
गुण | शीत |
वीर्य | शीत |
विपाक | कटु |
प्रभाव | रक्तकणरंजक |
दोष कर्म | पित्त (PITTA) और कफ (KAPHA) को शांत करता है |
अंगों पर प्रभाव | रक्त, स्नायु, लाल अस्थि मज्जा, यकृत, प्लीहा, ह्रदय, अग्न्याशय और फेफड़े |
चिकित्सीय संकेत
मण्डूर भस्म निम्नलिखित स्वास्थ्य स्थितियों में सहायक है।
मुख्य संकेत
- रक्ताल्पता
- प्लीहावर्धन – प्लीहा का बढ़ना
- यकृतवृद्धि – यकृत का बढ़ना
- मृदभक्षण के कारण रक्ताल्पता – मिट्टी खाना
- रजोरोध – लौह-अल्पताजन्य रक्ताल्पता के कारण
- कष्टार्तव
- रक्तप्रदर – अत्यधिक रक्त शमन
- पीलिया
सहायक संकेत
- भूख ना लगना
- सामान्य दुर्बलता – विशेष रूप से रक्ताल्पता के कारण
- बेचैनी के साथ जीर्ण ज्वर
- सूखा रोग – प्रवाल पिष्टी या मुक्ता पिष्टी और गिलोय सत्त के साथ
- रक्तलायी पीलिया
लाभ और औषधीय उपयोग
मण्डूर भस्म मुख्य रूप से लौह पूरक है, लेकिन साथ ही अन्य बीमारियों में भी चिकित्सीय लाभ प्रदान करता है। आयुर्वेद में अन्य उपायों के साथ साथ, इसका उपयोग पीलिया, अतिसार, शीघ्रकोपी आंत्र सिंड्रोम, अपच, कृमि संक्रमण और तंत्रिका शूल के लिए भी व्यापक रूप से किया जाता है। यहां मण्डूर भस्म के कुछ महत्वपूर्ण औषधीय उपयोग और लाभ दिए गए हैं।
रक्ताल्पता
मण्डूर भस्म लौह-अल्पताजन्य रक्ताल्पता में प्रभावी है। इसे जड़ी बूटियों के साथ संसाधित और उच्च तापमान पर निस्तापित किया जाता है, जिससे मण्डूर भस्म से शरीर में लोहे की जैव उपलब्धता बढ़ जाती है और उसके अवांछित प्रभाव कम हो जाते हैं। इसलिए यह पारंपरिक एलोपैथिक लोह पूरक की तुलना में अधिक सुरक्षित और सहनीय है। आधुनिक लौह पूरकों के कारण दांतों और मल के रंग का मलिनीकरण हो जाता है, लेकिन उचित विधि से बनायी गयी मण्डूर भस्म से इस प्रकार के कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। आयुर्वेद में उपयोग की गयी लौह भस्म की तुलना में मण्डूर भस्म अधिक सहनीय है।
मण्डूर भस्म सामान्य थकान, शारीरिक कमजोरी और त्वचा के पीले रंग के मलिनकिरण को कम कर देता है। यह सांस लेने में परेशानी, चक्कर आना, सूजन और सिर दर्द सहित लगभग सभी रक्ताल्पता के लक्षणों से राहत प्रदान करता है। यह रक्ताल्पता के कारण होने वाले विकारों जैसे चक्कर आना, आलस्य, अरुचि और भूख ना लगने के उपचार में भी मदद करता है।
गंभीर रक्ताल्पता से ग्रस्त लोगों की दिल की धड़कन तेज और अनियमित हो जाती है। अर्जुन चूर्ण के साथ मण्डूर भस्म इस लक्षण को कम करने में मदद करता है और हृदय को मजबूत करता है।
आयुर्वेदिक विज्ञान के अनुसार, मण्डूर भस्म में हेमेटोजेनिक (लाल रक्त कोशिकाओं के गठन में मदद करता है) गुणों के साथ साथ रक्तकणरंजक (हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाता है) गुण भी होते हैं। इसलिए, यह अस्थि मज्जा रोग वाले रोगियों के लिए भी लाभदायक है।
लाल रक्त कोशिका रक्ताल्पता
हालांकि, मण्डूर भस्म अकेले लाल रक्त कोशिका रक्ताल्पता के उपचार में काम नहीं करती है, लेकिन इसका एक नियमन पुनर्नवा मण्डूर लाल रक्त कोशिका रक्ताल्पता के उपचार में प्रभावी है। पुनर्नवा मण्डूर अधिक लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने में मदद करता है और लौह की आवश्यकता पूरी करता है। इसके अतिरिक्त, यह रक्ताल्पता के कारण होने वाली थकान और सूजन भी कम करता है।
शोफ
शोफ के कई अंतर्निहित कारण हो सकते हैं। यह गंभीर रक्ताल्पता और यकृत विकारों के कारण भी हो सकता है। यदि अंतर्निहित कारण गंभीर रक्ताल्पता और यकृत विकार है, तो मण्डूर भस्म लाभकारी होती है। मण्डूर भस्म पुनर्नवा चूर्ण या पुनर्नवारिष्ट, सारिवाद्यासव और शिलाजीत के संयोजन में, शोफ को कम करता है। यह संयोजन शोफ को हटाने के लिए अधिक लाभदायक है।
मृदभक्षण – मिट्टी खाना
मण्डूर भस्म शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाकर मिट्टी, खड़िया, चूना आदि खाने की अजीव इच्छा को कम करता है। दरअसल, ज्यादातर लोगों में लौह-अल्पताजन्य रक्ताल्पता का कारण मृदभक्षण होता है। शोध अध्ययनों ने यह भी बताया है कि इन लोगों में कैल्शियम कम पाया जाता है। इसलिए प्रवाल पिष्टी के साथ मण्डूर भस्म बहुत लाभदायक है।
इन मामलों में, मिट्टी आंतों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है और जस्ता, लोहा और कैल्शियम सहित महत्वपूर्ण पोषक तत्वों के अवशोषण को बाधित कर सकती है। ऐसे मामलों में, मण्डूर भस्म का उपयोग करने से पहले रेचक औषधि का उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा, मण्डूर भस्म आँतों को साफ़ करता है और इसमें एकत्रित अवांछनीय पदार्थों को बाहर निकालता है। इसलिए, यह पाचन कार्यों में सुधार करता है और अन्य पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाता है।
यकृतशोथ और पीलिया
मण्डूर भस्म में यकृत रक्षात्मक गुण होते हैं। मण्डूर भस्म और कुमार्यासव के साथ 2 से 4 सप्ताह का कोर्स रक्त में बिलीरुबिन स्तर को कम करने में मदद करता है और यकृत कार्यों को सामान्य बनाता है।
वसायुक्त यकृत रोग
मण्डूर भस्म में लिपोलिटिक गुण होते हैं और यह वसापजनन को प्रेरित करता है। लिपोलिसिस का संभावित तंत्र (वसा भंग करना) कोशिका इंसुलिन प्रतिरोध को कम करके रक्त में इंसुलिन स्तर को नियमित करता है। लिपिोलिसिस अवरोध के लिए एक उच्च इंसुलिन स्तर जिम्मेदार हो सकता है, जिसके कारण शरीर के यकृत और अन्य भागों (विशेष रूप से अंदरूनी अंगों) में वसा संचय होता है। हाइपर इंसुलिनेमिया के मामले में, यकृत वसा को जमा करता है और रोगी को वसायुक्त यकृत रोग की ओर ले जाता है।
मण्डूर भस्म दोहरी क्रिया करता है। यह कोशिका इंसुलिन प्रतिरोध पर काम करता है और कोशिकाओं द्वारा इंसुलिन की पर्याप्त मात्रा में वृद्धि करके रक्त में इंसुलिन का स्तर कम करता है और रक्त में इंसुलिन के अतिरिक्त स्तर का संकेत देने के द्वारा इंसुलिन स्राव को नियंत्रित करता है। दूसरे, मण्डूर भस्म शरीर में वसा को घटाता है, इसलिए यह वसायुक्त यकृत रोग का उपचार करता है।
रक्तलायी पीलिया
जब रक्त कोशिकाओं (RBC) की गिरावट के कारण बिलीरुबिन उत्पादन बढ़ जाता है तो रक्तलायी पीलिया हो जाता है। हालांकि, ऐसे मामले में, मण्डूर भस्म अकेले काम नहीं कर सकता। लाल रक्त कोशिकाओं की तीव्र गिरावट का निवारण करना और उसे रोकना भी आवश्यकता है। इसके लिए, प्रवाल पिष्टी (Praval Pishti), मुक्ता-पिष्टी (Mukta Pishti) और गिलोय-सत्त (Giloy Sat) उपचार का महत्वपूर्ण भाग बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त, मण्डूर भस्म बढे हुए बिलीरुबिन स्तर को कम करने और लाल रक्त कोशिकाओं की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए सहायक भूमिका निभाता है।
रजोरोध
मण्डूर भस्म की सीधी आर्तवजनक क्रिया नहीं भी हो सकती है। दरअसल, ज्यादातर भारतीय महिलाओं में लौह-अल्पताजन्य रक्ताल्पता भी रजोरोध का कारण हो सकता है। ऐसे मामले में, मण्डूर भस्म लाभदायक है। रजोरोध (अनुपस्थित मासिक धर्म) में बेहतर परिणाम के लिए, मण्डूर भस्म को कुमार्यासव (Kumaryasava) के संयोजन में लिया जाना चाहिए।
कष्टार्तव
मण्डूर भस्म में आक्षेपनाशक क्रिया होती हैं, जिससे पेट के दर्द और ऐंठन से आराम मिलता है। कई किशोर लड़कियों में लौह-अल्पताजन्य रक्ताल्पता दर्दनाक मासिक धर्म का कारण होता है। ऐसे मामलों में मण्डूर भस्म उसकी दोहरी क्रिया – आक्षेपनाशक और लौह अनुपूरण के कारण मुख्य रूप से लाभदायक हो जाता है।
मात्रा एवम सेवन विधि
मण्डूर भस्म (Mandur Bhasma) की सामान्य औषधीय मात्रा व खुराक इस प्रकार है:
औषधीय मात्रा (Dosage)
शिशु | संस्तुति नहीं |
बच्चे(5 वर्ष की आयु से ऊपर) | 25 से 50 मिलीग्राम |
वयस्क | 125 से 375 मिलीग्राम |
गर्भावस्था | 25 मिलीग्राम |
वृद्धावस्था | 50 से 125 मिलीग्राम |
अधिकतम संभावित खुराक | 750 मिलीग्राम * |
* कुल दैनिक खुराक विभाजित मात्रा में
सेवन विधि
दवा लेने का उचित समय (कब लें?) | खाना खाने के तुरंत बाद लें |
दिन में कितनी बार लें? | 2 बार – सुबह और शाम |
अनुपान (किस के साथ लें?) | उपयुक्त अनुपान के साथ |
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) | चिकित्सक की सलाह लें |
खुराक समायोजन
मण्डूर भस्म को उचित खुराक समायोजन की आवश्यकता है। कुछ लोगों को केवल छोटी मात्रा (50 मिलीग्राम से कम) में इसकी आवश्यकता होती है। रोगी की सहनशीलता के अनुसार खुराक को समायोजित किया जाना चाहिए। किसी भी स्थिति में, मण्डूर भस्म की अधिकतम मात्रा प्रतिदिन 750 मिलीग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए।
सुरक्षा प्रोफाइल
मण्डूर भस्म को प्रतिदिन दो बार 125 मिलीग्राम की खुराक में सुरक्षित और सहनीय माना जाता है। चिकित्सा पर्यवेक्षण में उच्च खुराक को भी संभवतः सुरक्षित माना जा सकता है।
दुष्प्रभाव
मण्डूर भस्म का छह महीने की लंबी अवधि में प्रतिदिन दो बार 125 मिलीग्राम की खुराक लेने पर भी कोई दुष्प्रभाव नहीं पाया गया है। मण्डूर भस्म का प्रतिदिन दो बार 250 मिलीग्राम की खुराक में अल्पकालिक उपयोग भी सुरक्षित हो सकता है, लेकिन इस खुराक को 4 सप्ताह से अधिक अवधि के लिए नियमित आधार पर सावधानी के साथ उपयोग किया जाना चाहिए।
विषाक्तता
अच्छी तरह से तैयार (प्राचीन विधियों के अनुसार) की गयी मण्डूर भस्म में कोई विषाक्तता नहीं होती है, लेकिन अधपकी मण्डूर भस्म में विषाक्तता और कई अवांछित प्रभाव हो सकते हैं जैसे:
- काला मल
- लौह अधिक होना
- मुंह का स्वाद बदलना
हालांकि, अन्य प्रभाव उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन इससे यकृत की क्षति हो सकती है और अग्न्याशय की क्रियाओं में बदलाव आ सकता है।
गर्भावस्था और स्तनपान
आयुर्वेद के अनुसार, मण्डूर भस्म एक सौम्य औषधि है और गर्भवती महिलाओं के लिए अति सहनीय है। गर्भावस्था में प्रति दिन 50 मिलीग्राम से कम मात्रा में इसका उपयोग सुरक्षित रूप से किया जा सकता है।
सूचना स्रोत (Original Article)
- Mandoor Bhasma Benefits, Uses, Dosage & Side Effects – AYURTIMES.COM