अविलतोलादि भस्म
अविलतोलादि भस्म गंजी या अविलतोलादि भस्म सहस्रयोगम में प्रस्तुत एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका उपयोग कई अंतर्निहित कारणों से होने वाले जलोदर के उपचार में किया जाता है। अविलतोलादि भस्म में मूत्रवर्धक गुण होते हैं, इसलिए यह पेशाब को बढ़ाता है और शरीर में जमा द्रव को कम कर देता है।
Contents
घटक
अविलतोलादि भस्म के निर्माण में निम्नलिखित जड़ी-बूटियों को समान अनुपात में लिया जाता है।
- अविलतोला छाल या बीज
- अपामार्ग
- हस्तिदन्ति
- आक
- एरंड
- कोकिलाक्शा
- अरग्वधा
- सेहुंड (स्नूही)
- केले का पेड़ – केला (कदली)
औषधीय गुण
अविलतोलादि भस्म में निम्नलिखित उपचार के गुण हैं।
- मूत्रवर्धक
- हल्का दाह-नाशक
- यकृत सुरक्षात्मक
- सौम्य पीड़ा-नाशक
- पाचन उत्तेजक
- वातहर
- अम्लत्वनाशक
चिकित्सीय संकेत
शोफ और जलोदर अविलतोलादि भस्मम के उपयोग के लिए मुख्य संकेत हैं।
लाभ और औषधीय उपयोग
अविलतोलादि भस्म का मुख्य लाभ उसके मूत्रवर्धक गुणों पर आधारित है। यह पेशाब को प्रेरित करता है, द्रव प्रतिधारण को कम करता है और पाचन में सुधार करता है।
शोफ या जलोदर
शरीर के ऊतकों में अधिक मात्रा में तरल पदार्थ जमा हो जाने से जलोदर हो जाता है। यह आम तौर पर टखनों, पैरों और टांगों में होता है। यह हाथों या शरीर के किसी अन्य भाग में भी हो सकता है। जलोदर के सबसे सामान्य कारण हैं:
- औषध
- हृदय रोग
- वृक्क रोग
- यकृत विकार
सामान्य उपचार में किसी भी अंतर्निहित कारण से होने वाले जलोदर के लिए अविलतोलादि भस्म का उपयोग सम्मिलित है। हालांकि, रोगी को अंतर्निहित बीमारियों के अनुसार औषधि की आवश्यकता भी होती है।
सामान्य जलोदर
अगर लंबे समय तक एक स्थान पर बैठे या खड़े होने के कारण जलोदर हो जाता है तो सिर्फ अविलतोलादि भस्म से लाभ मिल सकता है। स्टेरॉयड दवाओं, एस्ट्रोजेन, एनएसएआईडीएस आदि के अत्यधिक उपयोग के कारण जलोदर उत्पन्न होने पर भी यह अकेले मदद कर सकता है।
ह्रदय रोगों के कारण जलोदर
आम तौर पर, हृदय रोगियों में जलोदर का एक प्रमुख कारण हृदय की विफलता है। ऐसे मामले में, हृदय के निचले कक्ष रक्त को प्रभावी ढंग से पंप नहीं कर पाते हैं। फलस्वरूप, टकनों, पैरों और टांगों में जलोदर हो जाता है। हल्के मामलों में, अविलतोलादि भस्म को पतले छाछ के साथ दिया जाता है। इस उपचार के अतिरिक्त, निम्नलिखित औषधियां भी आवश्यक हैं।
उपाय | खुराक (दिन में दो बार) |
अर्जुन क्षीर पाक – Arjuna Kshir Pak | 100 मिलीलीटर दूध, 100 मिलीलीटर पानी और 5 ग्राम अर्जुन छाल के चूर्ण (Terminalia Arjuna Bark Powder) के साथ बनाया जाता है – इसे 100 मिलीलीटर बाकी रहने तक पकायें |
अविलतोलादि भस्म | 500 मिलीग्राम पतली छाछ के साथ |
लक्ष्मी विलास रस या महालक्ष्मी विलास रस (स्वर्ण) | 125 मिलीग्राम |
प्रभाकर वटी – Prabhakar Vati | 500 मिलीग्राम |
कुछ मामलों में, अन्य उपचारों की भी आवश्यकता हो सकती है जैसे अभ्रक भस्म (Abhrak Bhasma), मुक्ता भस्म (Mukta Bhasma), माणिक्य भस्म, अकीक पिष्टी (Akik Pishti), स्वर्ण भस्म (Swarna Bhasma) आदि।
गुर्दे के रोग के कारण जलोदर
गुर्दे के विकारों के कारण जलोदर पैरों और आँखों के आसपास होता है। इस प्रकार के जलोदर का मुख्य कारण नेफ्रोटिक सिंड्रोम (मूत्र में अल्ब्यूमिन की हानि और रक्त में एल्ब्यूमिन की कमी के कारण, जिससे कारण द्रव का संचय होता है) और गुर्दे की विफलता (उत्सर्जन की समस्या के कारण) है। दोनों ही मामलों में, मूत्रल औषधियों का प्राकृतिक विकल्प अविलतोलादि भस्म है। हालांकि, यह अकेले ही बीमारी का उपचार नहीं कर सकता है, इसलिए रोगी को अपने दोष के अनुसार अन्य आयुर्वेदिक उपचार की आवश्यकता भी होती है।
यकृत विकारों के कारण जलोदर
लिवर सिरोसिस या यकृत की क्षति जलोदर का एक मुख्य कारण होता है जो उदर-गह्वर में होता है। यकृत रक्षक औषधियों (जैसे सिलीमारिन – milk thistle का सत्त, भृंगराज चूर्ण (Bhringraj Powder), पुनर्नवा चूर्ण, कुटकी आदि) के साथ अविलतोलादि भस्म उदर-गह्वर में द्रव संचय को कम करने में मदद करता है। इस तरह के मामलों में आरोग्यवर्धिनी वटी सहायक होती है, लेकिन परिणाम मिलने में अधिक समय लग सकता है। इसलिए, गुर्दे के विकारों के कारण होने वाले जलोदर में अविलतोलादि भस्म के साथ आरोग्यवर्धिनी वटी उत्तम परिणाम प्रदान करती है।
मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
बच्चे | 125 से 500 मिलीग्राम * |
वयस्क | 250 से 1000 मिलीग्राम * |
गर्भावस्था | अनुशंसित नहीं |
वृद्धावस्था | 250 से 500 मिलीग्राम * |
अधिकतम संभावित खुराक (प्रति दिन या 24 घंटों में) | 3 ग्राम (विभाजित मात्रा में) |
* दिन में दो बार पतली छाछ या गुनगुने पानी के साथ
अविलतोलादि भस्म के दुष्प्रभाव
आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में उपयोग किए जाने पर अविलतोलादि भस्म पूरी तरह से सुरक्षित और सहनीय मानी जाती है।
अविलतोलादि भस्म एक क्षार (अल्कली) आधारित औषधि है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर से अतिरिक्त द्रव बाहर निकल सकता है। हालांकि, यह दुष्प्रभाव बहुत दुर्लभ है और इसके बारे बहुत कम पता चला है।
जैसे की यह क्षार है, इसलिए इसके दीर्घकालिक उपयोग से हड्डियों में खनिज का नुकसान हो सकता है, जिससे हड्डियों में खनिज का घनत्व कम हो सकता है या वे कमजोर हो सकती हैं।
गर्भावस्था और स्तनपान
अविलतोलादि भस्म एक क्षार (अल्कली) आधारित औषधि है, इसलिए इसलिए यह गर्भावस्था और स्तनपान में इसके उपयोग नहीं करना चाहिए। इसका उपयोग करने से गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कैल्शियम-खनिज का नुकसान हो सकता है। स्तनपान कराने वाली माताओं में, इसके सेवन से स्तन में दूध की आपूर्ति कम हो सकती है।
विपरीत संकेत (Contraindications)
अविलतोलादि भस्म में निम्न पूर्ण विपरीत संकेत हैं:
- निम्न अस्थि खनिज घनत्व
- ऑस्टियोपोरोसिस
- गर्भावस्था
- स्तनपान
संदर्भ
- Aviltoladi Bhasma – AYURTIMES.COM