आसव अरिष्ट

अयस्कृति के फायदे, औषधीय प्रयोग, मात्रा एवं दुष्प्रभाव

अयस्कृति आमतौर पर केरल में मूत्र संबंधी विकार, रक्तस्राव, ल्यूकोडर्मा (leucoderma), त्वचा विकार, भूख की कमी, कृमि संक्रमण, रक्ताल्पता, शीघ्रकोपी आंत्र विकार के लक्षण, कुअवशोषण विकार और मोटापे के उपचार के लिए प्रयोग की जाने वाली एक आयुर्वेदिक औषधि है। अयस्कृति का मुख्य प्रभाव वात दोष और कफ दोष पर पड़ता है। यह वसा दहन को उत्प्रेरित करके शरीर में  वसा के संचय को कम कर देता है। सबसे अधिक प्रभाव पेट पर वसा संचय पर देखा जाता है। इसका  नियमित उपयोग  समग्र शरीर के वजन को कम करने में मदद करता है, हालांकि इसका परिणाम सभी व्यक्तियों में एक जैसा नहीं पाया जाता।

अयस्कृति दो शब्दों से मिलकर बना है – अयस जिसका अर्थ है लोहा और कृति, जिसका अर्थ है तकनीक। लोहे का उपयोग करके बनाये गए नियमन को अयस्कृति कहते हैं।

Contents

अयस्कृति घटक द्रव्य (संरचना)

अयस्कृति में लोहा, शहद, गुड़ आदि के अलावा आसनादि गण और वात्सकादि गण होते हैं।

औषधीय क्रियाऐं

अयस्कृति पाचन, चयापचय और परिपाक में सुधार करती है। इसकी लौह सामग्री रक्त में लोहे के स्तर को बढ़ाती है, इसलिए यह रक्ताल्पता में मदद करती है। यह संचित वसा को जलाने के लिए प्रेरित करती है, जो कि उसमें उपस्थित लौह और अन्य जड़ी-बूटियों के लेखन कर्म के कारण हो सकता है।

औषधीय गुण

  • कृमिनाशक
  • रोगाणुरोधी
  • शर्करानाशक
  • वसा नाशक
  • दाह विरोधी
  • प्रतिउपचायक
  • वायुनाशी
  • पाचन उत्तेजक
  • वसा दाहक
  • ज्वरनाशक

चिकित्सीय संकेत

  • मूत्र विकार
  • बवासीर
  • लुकोडर्मा (श्वित्र)
  • चर्म रोग
  • भूख में कमी
  • कृमि संक्रमण
  • रक्ताल्पता
  • शीघ्रकोपी आंत्र संक्रमण
  • कुअवशोषण विकार
  • मोटापा

अयस्कृति लाभ और उपयोग

अयस्कृति शरीर में लोहे के स्तर को प्रभावित करती है और अतिरिक्त वसा के दहन को प्रेरित करती है। इसके अतिरिक्त, यह बार बार मूत्र करने की आवृत्ति में कमी, मूत्र पथ के संक्रमण में मदद, आंत्र परजीवी की समाप्ति, चयापचय में सुधार और अवशोषण में सुधार करती है।

रक्ताल्पता

अयस्कृति का प्रमुख घटक लौह है, इसलिए यह लोहे की कमी के कारण होने वाली रक्ताल्पता में बहुत लाभदायक है। यह रक्ताल्पता में अधिक उपयोगी है जब रोगी में कफ और वात के लक्षण जैसे स्पर्श से ठंडा लगना, जलोदर त्वचा, थकावट, चिपचिपे मल वाली कब्ज आदि उपस्थित हों।

मोटापा

आयुर्वेद के अनुसार, लौह में लेखन कर्म होता है और लौह की कमी को मोटापे से भी जोड़ा गया है। मोटापे से लोहे की कमी भी हो सकती है और इसके विपरीत भी हो सकता है।

अयस्कृति के लगभग सभी घटकों में मोटापा नाशक क्रियाऐं भी होती हैं, इसलिए यह मोटापे के लिए सबसे अच्छी आयुर्वेदिक औषधि है। यदि मोटापे से ग्रसित लोग लोहे की कमी वाली रक्ताल्पता और बढ़े हुए कफ लक्षणों (Increased Kapha Symptoms) से भी पीड़ित हों तो यह मोटे लोगों के लिए सबसे उपयुक्त औषधि होगी।

सावधानी: हालांकि, यह कुपित पित्त लक्षण वाले (Aggravated Pitta Symptoms) व्यक्तियों के लिए उपयुक्त नहीं है। इसलिए, इसका उपयोग पित्त लक्षण युक्त मोटापे में नहीं करना चाहिए। अयस्कृति जैसी आयुर्वेदिक औषधि का उपयोग करने से पहले आयुर्वेद की मुख्य अवधारणाओं को गहराई से समझना चाहिए।

अयस्कृति मात्रा एवम सेवन विधि

औषधीय मात्रा (Dosage)

बच्चे(5 वर्ष की आयु से ऊपर) 5 से 10 मिलीलीटर
वयस्क 10 से 30 मिलीलीटर *
अधिकतम संभावित खुराक निर्दिष्ट नहीं है, लेकिन प्रति दिन 60 मिलीलीटर तक हो सकती है (विभाजित मात्रा में)

सेवन विधि

दवा लेने का उचित समय (कब लें?) खाना खाने के तुरंत बाद लें
दिन में कितनी बार लें? 2 बार – सुबह और शाम
अनुपान (किस के साथ लें?) समान मात्रा पानी के साथ
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) चिकित्सक की सलाह लें

अयस्कृति की खुराक को रोगी की पाचन क्षमता के अनुसार समायोजित किया जा सकता है। दोष के विश्लेषण, स्वास्थ्य स्थिति और व्यक्तिगत आवश्यकता के अनुसार खुराक को बढ़ाया या घटाया जा सकता है। वात स्थिति में, अयस्कृति की खुराक को तालिका में निर्दिष्ट खुराक तक सीमित रखना चाहिए। हालांकि, कफ की स्थिति में, वांछित चिकित्सीय क्रियाओं को बढ़ाने के लिए अयस्कृति की खुराक को बढ़ाया जा सकता है।

सुरक्षा प्रोफाइल

हालाँकि, कफ दोष की प्रबलता के अनुसार अयस्कृति का समझदारी के साथ उपयोग संभवतः सुरक्षित है। यह वात स्थितियों में भी काफी सुरक्षित है। लेकिन यदि पित्त दोष में इसका उपयोग ठीक प्रकार से ना किया जाए तो दुष्प्रभाव प्रकट हो सकते हैं।

अयस्कृति के दुष्प्रभाव

यदि बढ़े हुए पित्त वाले व्यक्तियों द्वारा इसका उपयोग किया जाए तो निम्न दुष्प्रभाव हो सकते हैं:

  • सीने में जलन
  • पेट में जलन
  • अतिअम्लता
  • पित्त लक्षणों को और अधिक विकृति

गर्भावस्था और स्तनपान

गर्भावस्था के दौरान किसी भी स्थिति में अयस्कृति की संस्तुति नहीं की जाती है, इसलिए गर्भावस्था के समय इसका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।

स्तनपान कराते समय अयस्कृति का उपयोग किया जा सकता है। यह लोहे के पूरक के रूप में कार्य करता है और साथ ही प्रसव के बाद गर्भाशय को गर्भावस्था से पहले के आकार में पुनर्स्थापित करने में मदद करता है। कुछ चिकित्सक प्रसवोत्तर स्थितियों और गर्भावस्था के बाद वजन बढ़ने को रोकने के लिए इसका उपयोग दशमूलारिष्ट (Dashmularishta) के साथ करते हैं।

विपरीत संकेत

हालांकि, अयस्कृति के लिए कोई पूर्ण विपरीत संकेत नहीं है, लेकिन सैद्धांतिक विज्ञान के अनुसार, इसमें लौह घटक होने से, शरीर में लौह अधिभार (hemochromatosis – रुधिरलोहवर्णकता) के कारण विपरीत संकेत हो सकते हैं।

प्रश्न और उत्तर

क्या हम वृद्धावस्था में मूत्र आवृत्ति बढ़ने पर अयस्कृति का उपयोग कर सकते हैं, जैसा कि उल्लेख किया गया है कि इसके कुछ दुष्प्रभाव भी हैं?

अयस्कृति के मामले में, यदि रोगी पहले से ही पित्त विकार या पित्त दोष से पीड़ित हो तो इसका उपयोग पित्त लक्षणों को बिगाड़ सकता है। अयस्कृति के दुष्प्रभाव बहुत दुर्लभ हैं। कृपया अधिक जानकारी के लिए सुरक्षा प्रोफ़ाइल पढ़ें।

सूचना स्रोत (Original Article)

  1. Ayaskriti – AYURTIMES.COM

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