आसव अरिष्ट

दशमूलारिष्ट (Dasamoolarishtam)

दशमूलारिष्ट (Dasamoolarishtam या Dashmularishta) एक अति लाभप्रद औषधि है। इसके सेवन से विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभ मिलता है। मुख्य रूप से वात संबंधी विकारों, उदर रोग और मूत्र रोगों में लाभ देती है। यह औषधि बन्ध्या महिला को संतान प्राप्ति में सहायक है, गर्भाशय की शुद्धि करती है और निर्बलों को बल, तेज और वीर्य प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त बहुत से अन्य रोगों में भी इस औषधि से सेवन से लाभ मिलता है

यह वातरोग, भगंदर, क्षय, अरुचि, श्वास, वमन, संग्रहणी, कास, पाण्डु, कुष्ठ, अर्श, प्रमेह, धातुक्षय, मंदाग्नि, उदर रोग और मूत्र संबंधी रोग आदि के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।

Contents

घटक द्रव्य  एवं निर्माण विधि

घटक द्रव्यों के नाम मात्रा
दशमूल 200 तोला या लगभग 2400 ग्राम
चित्रक छाल 100 तोला या लगभग 1200 ग्राम
लोध 80 तोला या लगभग 960 ग्राम
गिलोय 80 तोला या लगभग 960 ग्राम
आंवला 64 तोला या लगभग 768 ग्राम
धमासा 48 तोला या लगभग 576 ग्राम
खेर की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
विजयसार की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
हरड़ की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
कूठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
मजीठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
देवदारु 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बायबिडंग 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
मुलेठी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
भारंगी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
कबीठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बहेड़ा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सांठी की जड़ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
चव्य 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
जटामांसी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
गेऊँला 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
अनंतमूल 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
स्याह जीरा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
निसोत 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
रेणुक बीज 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
रास्र 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
पीपल 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सुपारी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
कचूर 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
हल्दी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सूवा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
पद्म 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
काष्ठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
नागकेसर 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
नागर मोथा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
इन्द्र जौ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
काकड़ासिंगी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बिदारी कंद 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
असगंध 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
मुलेठी 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
वाराही कंद 16 तोला या लगभग 192 ग्राम

दशमूलारिष्ट के घटक निर्माण करने की विधि इस प्रकार है।

  1. इन सभी घटकों को अच्छी तरह से कूट लें और इसके आठ गुना जल में काढ़ा बनायें। जब एक चौथाई जल शेष रह जाए तो इसे उतार लें।
  2. इसके बाद 256 तोला या लगभग 3 किलो मुनक्का को लगभग 12 लीटर जल में उबालें। जब एक चौथाई जल कम हो जाए तो उसको उतार लें।
  3. इसके पश्चात इन दोनों काढ़ों को अच्छी तरह मिलाकर छान लें।
  4. फिर शहद लगभग 1560 ग्राम, गुड़ लगभग 19 किलो 200 ग्राम, धाय के फूल लगभग 1440 ग्राम और शीतल मिर्च, नेत्रबाला, सफ़ेद चन्दन, जायफल, लौंग, दालचीनी, इलायची, तेजपत्ता, पीपल, नागकेशर प्रत्येक को लगभग 96 ग्राम लें। इन सभी को काढ़े की छानी हुई सामग्री के साथ मिलाकर चूर्ण बनायें।
  5. फिर इस चूर्ण में लगभग 3 ग्राम कस्तूरी मिलाकर 1 महीने के लिए रख दें।
  6. इसके पश्चात इसे छान लें और थोड़े से निर्मली के बीज मिलाकर दशमूलारिष्ट को स्वच्छ बना लें।

औषधि तैयार हो जाने के बाद कस्तूरी मिलाने से सुगंध बनी रहती है और दशमूलारिष्ट  के फायदे ज्यादा मिलते है।

औषधीय कर्म (Medicinal Actions)

  • वेदनास्थापन – पीड़ाहर (दर्द निवारक)
  • ह्रदय – दिल को ताकत देने वाला
  • शोथहर
  • वातज कासहर
  • श्वासहर
  • क्षुधावर्धक – भूख बढ़ाने वाला
  • पाचन – पाचन शक्ति बढाने वाली
  • अनुलोमन
  • दीपन
  • संशोधन
  • पितसारक
  • प्रजास्थापन
  • स्तन्यशोधन
  • शुक्रशोधन
  • आमपाचन
  • शीतप्रशमन
  • जीवाणु नाशक
  • पूतिहर
  • जीवनीय
  • वल्य
  • ओजोबर्धक
  • रसायन
  • रक्तदूषण
  • उत्सादन
  • मज्जक्षपण
  • रक्तप्रसादन
  • अवसादन
  • शुक्रवर्धन
  • बृहण
  • मेदोवर्धन
  • शुक्रक्षपण
दोष कर्म (Dosha Action) वात (Vata) शामक, कफ (Kapha) शामक, पित्त (Pitta) संशोधक

चिकित्सकीय संकेत (Indications)

  • प्रसूता स्त्री में गर्भाशय शोधन के लिए
  • वातव्याधि
  • वातज कास
  • प्रसूता ज्वर
  • भगंदर
  • क्षय
  • अरुचि
  • श्वास
  • वमन
  • संग्रहणी
  • कास
  • पाण्डु
  • कुष्ठ
  • अर्श
  • प्रमेह
  • धातुक्षय
  • मंदाग्नि
  • उदर रोग

औषधीय लाभ एवं प्रयोग (Benefits & Uses)

दशमूलारिष्ट मुख्यतः प्रसूता  रोगों और वात रोगों में उपयुक्त होता है।  इस के महत्वपूर्ण लाभ एवं प्रयोग निम्नलिखित है।

प्रसूता स्त्रियों के लिए दशमूलारिष्ट एक लाभप्रद औषधि

दशमूलारिष्ट के घटकों के कारण यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। यदि प्रसूता स्त्री शिशु के जन्म के पश्चात दशमूलारिष्ट सेवन करती है तो कई रोगों के होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती हैं। यह अग्नि दीपन करता है जिस से मंदाग्नि नहीं होती। यह आम का पाचन करता है जिस से ज्वर, जीर्णज्वर, आम और वात सम्बंधित विकृतियाँ नहीं होती। यह प्रसूता के कास और श्वास आदि भी लाभदायक है।

दशमूलारिष्ट के अरिष्ट में स्तंभक गुणों के कारण यह प्रसूता स्त्री के रक्तातिसार, अतिसार और संग्रहणी आदि विकारों में अति अनुकूल औषधि है।

इस का प्रगोय अश्वगंधारिष्ट के साथ करने पर यह उत्तम लाभ करता है और शरीर में प्रसव के बाद आयी निर्बलता को दूर करता है।

टिप्पणी: दशमूलारिष्ट वात और कफ प्रधान रोगों और लक्षणों में प्रभावशाली है। यदि प्रसूता स्त्रियों में पित्तप्रधान लक्षण जैसे कि मुँह में छाले, दाह, गरम जल सामान पतले दस्त, अधिक प्यास आदि लक्षण हों दशमूलारिष्ट का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

बार बार गर्भपात और गर्भस्राव हो जाना

बहुत सी स्त्रियों में गर्भाशय की शिथिलता बार बार होने वाले गर्भपात अथवा गर्भस्राव का कारण बनता है। दशमूलारिष्ट गर्भाशय की शिथिलता को दूर करने के लिए उत्कृष्ट आयुर्वेदिक दवा है। यह औषधि स्त्रियों के गर्भाशय को ताकत देती है। इस से बार बार होने वाले गर्भस्राव का इलाज होता है और स्वस्थ संतान की प्राप्ती होती है। इस प्रकार के रोग में इस का प्रयोग कम से कम ३ महीने जरूर करना चाहिए और फिर संतान प्राप्ती का प्रयास करना चाहिए।

पूयशुक्र (Pus Cells in Semen)

दशमूलारिष्ट एक शुक्र शोधक औषधि है। इसका प्रयोग रौप्य भस्म और त्रिफले के साथ करने से यह शुक्रशुद्धि करता है और वीर्य  में आ रही पस सेल्स को कम करता है। यह शुक्र शोधन कर शुक्र की वृद्धि भी करता है।

संग्रहणी रोग

आयुर्वेद अनुसार मंदाग्नि संग्रहणी रोग का मुख्य कारण है जिस से आंत्र में आम का संचय होना शुरू हो जाता है और संग्रहणी का कारण बनता है। दशमूलारिष्ट संग्रहणी के मूल कारण मंदाग्नि को दूर कर अग्नि प्रदीपित करता है और जीर्ण संग्रहणी के इलाज के लिए उत्तम कार्य करता है।

दर्द निवारक और शोथहर

दशमूलारिष्ट वात का शमन करता है। इसमें दर्द निवारक और शोथहर गुण है। इसी कारण से इसका प्रयोग दर्द निवारण के लिए किया जाता है। यह पीठ दर्द, गर्भाशय के दर्द, तीव्र शिरः शूल और पेट के दर्द आदि में हितकारी है।

श्वास रोग में दशमूलारिष्ट का प्रयोग

श्वास रोग में दशमूलारिष्ट का प्रयोग किया जाता है। जब रोगी अधिक व्याकुलता हो, जोर से खांसी आती हो, कफ अधिक नहीं निकलता हो, सांस लेते समह रोगी हांफने लगता हो, और नाड़ी की गति तेज हो, तो दशमूलारिष्ट का प्रयोग कारण लाभदायक सिद्ध होता है। ऐसी हालत में रोगी को दशमूलारिष्ट  कम मात्रा में 2-2 घंटे के अंतराल पर देना चाहिए।

मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)

दशमूलारिष्ट की सामान्य औषधीय खुराक इस प्रकार है:

औषधीय मात्रा (Dosage)

बच्चे 5 से 10 मिलीलीटर
वयस्क 10 से 25 मिलीलीटर

सेवन विधि

इसे भोजन ग्रहण करने के पश्चात जल की सामान मात्रा के साथ लें।

दवा लेने का उचित समय (कब लें?) सुबह और रात्रि भोजन के बाद
दिन में कितनी बार लें? 2 बार
अनुपान (किस के साथ लें?) बराबर मात्रा गुनगुना पानी मिला कर
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) चिकित्सक की सलाह लें

दुष्प्रभाव (Side Effects)

यदि दशमूलारिष्ट का प्रयोग व सेवन निर्धारित मात्रा (खुराक) में चिकित्सा पर्यवेक्षक के अंतर्गत किया जाए तो दशमूलारिष्ट के कोई दुष्परिणाम नहीं मिलते।

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